आज सुबह जब एकाएक अखबार पलटा तो "भारतीय विद्या भवन के रजिस्ट्रार एक दुर्घटना में मारे गये" शीर्षक वाली खबर पढकर काफी धक्का लगा भवन में रेडियो एंड टी.वी. जर्नलिज्म कोर्स के दौरान सुंदर सर से भारत की सांस्कृतिक विरासत नामक पेपर पढने का मौका मिला, उन्हीं दौरान उनको जानने का मौका मिला. स्वभाव से शांत, नम्र और मृदुभाषी सुंदर सर ने जब पहली बार भारतीय संस्कृति पर अपना व्याख्यान दिया, तब ही लग गया था कि विषय पर इनकी काफी गहरी पकड हैं, मेरी रुचि इस विषय में होने के कारण मैंने भी पत्र को गंभीरता से लिया और सर से इंडोलॉजी के बारे में जानने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ. कक्षा के दौरान जब किसी बिन्दु को समझाते थे,तो समझाने के दौरान ही वह तथ्य हमेशा के लिये स्मृति में चला जाया करता था. कक्षाएँ काफी कम हुई, इसका दुख उस समय काफी था.
अपनी भारतीय संस्कृति को जो कुछ भी थोडा बहुत जानने का मौका मिला, इसमें सुंदर सर का काफी हाथ था. भारतीय संस्कृति से संबंधित शब्दों की उत्त्पत्ति कैसे हुयी, ये सब काफी अच्छे तरीके से बताते थे. कक्षा के दौरान इतने धीरे से बोलते थे कि हमें सुनने के लिये ज्यादा एकाग्रता की आवश्यकता होती थी. भारतीय संस्कृति के ऐसे ऐसे तथ्यों को जानने का मौका मिला, जिसे हम चाहकर भी नहीं खोज सकते हैं.
अभी हाल में ही भवन के जर्नलिज्म के २००७-०८ बैच के कॉन्वोकेशन समारोह में उनका एक संक्षिप्त भाषण सुनने को मिला, जिसमें उन्होनें पूर्व के एक वक्ता की प्रशंसा करते हुये उसकी इस बात पर जोर दिया किया कि जीवन में तरक्की करने के बाद भी माता-पिता और गुरुजनों को कभी नहीं भूलने की बात कही.
देश के राष्ट्रीय अखबारों के लिये भले ही यह एक तेज गति के वाहन द्वारा की गयी एक दुर्घटना हो, लेकिन यह हमारे लिये एक अपूरणीय क्षति हैं. ऐसे विद्वान सज्जनों का एकाएक जाना काफी खलता हैं. मेरे तरफ से सुंदर सर को एक सच्ची श्रद्धांजलि. उनकी कमी आने वाले समय में नये छात्रों को काफी खलेगी.
अपनी भारतीय संस्कृति को जो कुछ भी थोडा बहुत जानने का मौका मिला, इसमें सुंदर सर का काफी हाथ था. भारतीय संस्कृति से संबंधित शब्दों की उत्त्पत्ति कैसे हुयी, ये सब काफी अच्छे तरीके से बताते थे. कक्षा के दौरान इतने धीरे से बोलते थे कि हमें सुनने के लिये ज्यादा एकाग्रता की आवश्यकता होती थी. भारतीय संस्कृति के ऐसे ऐसे तथ्यों को जानने का मौका मिला, जिसे हम चाहकर भी नहीं खोज सकते हैं.
अभी हाल में ही भवन के जर्नलिज्म के २००७-०८ बैच के कॉन्वोकेशन समारोह में उनका एक संक्षिप्त भाषण सुनने को मिला, जिसमें उन्होनें पूर्व के एक वक्ता की प्रशंसा करते हुये उसकी इस बात पर जोर दिया किया कि जीवन में तरक्की करने के बाद भी माता-पिता और गुरुजनों को कभी नहीं भूलने की बात कही.
देश के राष्ट्रीय अखबारों के लिये भले ही यह एक तेज गति के वाहन द्वारा की गयी एक दुर्घटना हो, लेकिन यह हमारे लिये एक अपूरणीय क्षति हैं. ऐसे विद्वान सज्जनों का एकाएक जाना काफी खलता हैं. मेरे तरफ से सुंदर सर को एक सच्ची श्रद्धांजलि. उनकी कमी आने वाले समय में नये छात्रों को काफी खलेगी.