सोमवार, 23 जून 2008

आखिर कब तक मनाते रहेंगे ८३ की जीत का जश्न

२५ जून २०३३. भारतीय क्रिकेट टीम को क्रिकेट का विश्व कप जीते पचास साल हो गया,इस अवसर पर फिफ्टी-५० वाली टीम को एक बार फिर से नयी दिल्ली में सम्मानित किया गया. बडी विडंबना हैं कि भारतीय टीम ने पिछले पचास साल में पचास ओवर के प्रारूप में एक ही बार विश्व कप जीता. साथ ही साथ पिछले साल धोनी की टीम का भी ट्वेंटी-२० के पच्चीस साल पूरे होने पर भी टीम के हर सदस्य को पच्चीस पच्चीस करोड रुपये दिये गये. बडे गर्व की बात हैं कि इन्हीं दो जीतों को अभी तक हम सेलेब्रेट करते नजर आ रहे हैं.आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा?

मंगलवार, 10 जून 2008

सचिन ने संन्यास लिया!

दुनिया के जाने माने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया. ये अपने आप में एक बडी खबर हैं.ये खबर ब्रेक की हमारे मीडिया में ही काम करने वाले एक मित्र ने. मुझे सुनकर अचंभा हुआ,मुझे तो इसकी खबर भी नहीं लगी.ऐसी खबर जिसके ऊपर समाचार चैनलों का एक दिन तो आसानी से बीत जायेगा. अखबारों में दो-तीन पेज तो आसानी से दिये जा सकते हैं. हुआ यूँ कि ये खबर उस मित्र ने सपने में देखा था.ये जानकर मेरे जान में जान आयी.
सचिन के संन्यास पर ना जाने कितने जानकारों ने अपनी टिप्पणी देने में कोई कोताही नहीं की वाकई पूछा जायें तो सचिन कब संन्यास लेंगे ये तो सचिन भी नहीं जानते हैं. अभी लीग के मुकाबले में चोटिल होने के कारण बाद के ही कुछ मैच खेल पायें. बांग्लादेश दौरे से भी नाम वापस ले लिया. ऐसी स्थिति में भी सचिन पर ऊँगली नहीं उठायी जायेगी. अब कुछ खास सीरीज में ही खेलते खेलते विश्व कप २०११ खेलने की ही मंशा सचिन की दिखायी देती हैं.
सबसे ज्यादा विश्व कप खेलने का रिकॉर्ड जो कि जावेद मियाँदाद के नाम हैं,उन्होंने भी यह रिकॉर्ड कैसे बनाया था-ये किसी से छिपा नही हैं. क्या सचिन भी उसी तरीके से यह रिकॉर्ड अपने नाम पर करना चाहते हैं.सचिन मैदान पर खेलते नजर आयें-ये सभी चाहते हैं,लेकिन उनका भी बल्ला टाँगने का समय आयेगा ही.उस समय यह देखना ज्यादा रोचक होगा कि सचिन ने जब क्रिकेट को अलविदा कहा तो उनके ना कितने रिकॉर्ड हैं,और कितने उनमें से कभी नहीं टूटने वाले हैं. शायद मित्र महोदय ने यह सपना नहीं देखा.चलिये अच्छा ही हैं.

आज के घरेलू नौकर घरेलू कैसे?

फिल्म 'आनंद' के रामू काका को हम घरेलू नौकर की श्रेणी में रखे तो कुछ बात समझ में आती हैं,लेकिन आज के नौकरों को किस श्रेणी में रखे,जिनकी नजर में घर के कीमती सामान ही सबकुछ होता हैं. इसके लिये वे अपने मालिक की भी हत्या करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं. आए दिन खबरों में नौकरों के द्वारा मालिकों की हत्या की घटनाएँ इतनी आम हो गयी हैं,फिर भी लोग इससे सबक नहीं लेते हैं.
पहले परिवारों में रहने वाले नौकरों के साथ नौकर जैसा व्यवहार ना कर परिवार के आम सदस्य जैसा व्यवहार किया जाता था. सच मायने में हम उन्हें घरेलू नौकर कह सकते थे.पर्व हो या त्योहार, परिवार के सदस्यों की ही तरह उनके लिये भी नये कपडे सिलवाना,उनकी हर जरूरतों का खयाल रखना-ये सब शामिल था. अगर सेवक बुजुर्ग हुये तो उन्हें काका की भाँति सम्मान देना साथ ही साथ उनकी राय को भी सुना जाता था.जिस घर में काम करते उसी घर में सारी जिंदगी बीता देना,कभी ऊँची आवाज में बात ना करना. लेकिन अब ये सब चीजें कहाँ देखने को मिलती हैं.
महानगरों की दौडती भागती जिंदगी में अपने काम के लिये समय ना निकाल पाने की स्थिति में नौकरों पर निर्भरता जरूरी जान पडती हैं. ऐसे में घरेलू नौकर रखे जाते हैं,जिसे की विभिन्न प्लेसमेंट एजेंसियाँ मुहैया करवाती हैं. समय समय पर पुलिस के द्वारा हिदायत देने के बाद भी वेरिफिकेशन का काम पूरा ना होने के बाद भी लोग इन नौकरों को अपने यहां काम पर रख लेते हैं और नतीजा एक सप्ताह से लेकर एक महीने के बीच में ही देखने को मिल जाता हैं.
बुजुर्ग लोग इन नये जमाने के नौकरों का सबसे आसान निशाना बनते हैं.सबसे ज्यादा खबरें बुजुर्गों की हत्या से संबंधित ही आती हैं.एकल परिवार की संकल्पना भी इसमें अहम भूमिका निभाती हैं. महानगरों में माता-पिता से अलग रहने का क्रेज बढता जा रहा हैं,जीवन की संध्या बेला में भी नौकरों के भरोसे रहना पड तो ऐसे औलाद किस काम के.
घरों में नौकर रखने की जरूरत ना पडे,इसका सबसे आसान उपाय हैं कि अपने सब काम स्वयं ही किये जायें.भले ही कम काम हो,लेकिन इससे दूसरे पर निर्भरता तो नहीं रहेगी.धीरे धीरे कर अपने सब काम कर लेने से सेहत भी बनी रहेगी. साथ ही फालतू काम भी नहीं करने पडेंगे.अगर अपने से नहीं संभव हैं तो स्वयं अपने घर में यमराज को आमंत्रण दीजिये,ना जाने कब आपके छोटे-मोटे काम को करते हुये आपका ही काम तमाम कर दें.

गुरुवार, 5 जून 2008

एक नया आतंकवाद : आर्थिक आतंकवाद

पेट्रोल,डीजल और कुकिंग गैस के दामों में बढोत्तरी होने के साथ ही एक नये टर्म से भी पाला पडा,वो हैं भाजपा के द्वारा दिया गया 'आर्थिक आतंकवाद'.ना जाने इस टर्म का क्या अभिप्राय हैं? समझने की कोशिश चल रही हैं.इसका अर्थ कोई अर्थशास्त्री बतायेंगे या रक्षा-विशेषज्ञ खोज जारी हैं. वैसे कच्चे तेल की बढती कीमतों को देखते हुये ऐसा करना जरूरी था,आखिर कब तक सरकारें सब्सिडी देती रहेगी. ऐसी स्थिति में किसी भी पार्टी की सरकार रहती तो तेल की कीमतों को बढाती ही.चुनावी साल में जब काँग्रेस को सहयोगियों और विपक्षी दलों के विरोध के बाद भी तेल की कीमतों को बढाना पडा,तो किसानों को जो कर्ज माफी दी गयी या लोकलुभावन बजट पेश किया गया सब पर पानी फिर गया.

भाजपा इस मुद्दे को अच्छी तरीके से भुनाने की कोशिश करेगी,बैठे-बैठाये एक मुद्दा जो मिल गया.आगामी आम चुनाव को देखते हुये काँग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार भी काफी दिनों से तेल की कीमतों को टालती आ रही थी,लेकिन जब सार्वजनिक तेल कंपनियों ने दो-तीन महीने के भीतर कैश ना होने की स्थिति में कच्चे तेल ना खरीद पाने की असमर्थता जाहिर की,तब जाकर सरकार ने मजबूरी में यह फैसला लिया. वाम मोर्चा से ऐसी स्थिति में ना विरोध करते बन पा रहा हैं ना समर्थन करते.

तीन,पाँच और पचास के अनुपात में भाजपा को अपनी लोकसभा की सीटें बढती हुयी नजर आ रही हैं. इधर प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर आकर यह सफाई देनी पड रही कि किस स्थिति में हमें यह कदम उठाना पडा, इसकी कोई जरूरत नहीं थी. वाम मोर्चा भी इस मुद्दे से फायदा उठाना चाह रहा हैं,लेकिन सरकार के साथ रहकर.
अंततः तेल व गैस की कीमतें बढ गयी हैं.इस सच्चाई से हम सब वाकिफ हैं,कुछ दिनों में ही इसका असर हमारे रोजमर्रा की जिंदगी पर दिखने लगेगा.नेता राजनीति करते रहेंगे,अपनी जेबें भरते रहेंगे.महँगाई दर डबल-डिजीट को छुएँ, महँगाई के कारण जनता का बुरा हाल हो-इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं हैं.नये जुमले उछाले जायेंगे और हम आम जनता उसी में माथा-पच्ची करते रह जायेंगे.