मंगलवार, 2 सितंबर 2008

काम करने वाले को फुर्सत हैं क्या?

बिहार में आयी महाप्रलय के बीच बयानों की बाढ के बीच राज्य के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का यह बयान काफी मायने रखता हैं क्योंकि काम करने वाला व्यक्ति चुपचाप अपने काम को अंजाम देता हैं ना कि उस चीज काढिढोरा पीटता फिरता हैं. वैसे हमेशा से ही राजनेताओं को ऐसे ही मौकों की तलाश रहती हैं जहाँ कि उनकी राजनीतिक रोटियाँ सेंकी जा सके. भारत का अपने को सबसे बडा और सफल रेल मंत्री मानने वाले रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव बाढ के दौरान खबरिया चैनलों पर इतनी तेजी से आ रहे हैं कि वह एक तरीके से इस पूरे महाप्रलय के प्रवक्ता बन गये हैं.
संकट के इस घडी में यह घोषणा करना कि बाढ पीडितों के लिये रेलयात्रा में कोई किराया नहीं लिया जायेगा और इस बात के लिये हमेशा क्रेडिट लेना कि मैंने ये करवाया वो करवाया - राजनेताओं के मानसिक दिवालियेपन की निशानी हैं. आखिरकार इन्हें प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया हैं तो यह इनका कर्त्तव्य हैं कि जनता की हरसंभव मदद की जाये. प्राकृतिक आपदाये बताकर तो नही आती हैं. ऐसे समय भी सियासत करना और मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे के जवाबों का जवाब देना कहाँ तक जायज बनता हैं, इसका फैसला वक्त आने पर जनता ही करेगी.
बिहार में बाढ आना कोई नयी बात नहीं हैं. हर साल किसी ना किसी रूप में बाढ आती ही हैं. इस बार बाढ की विभीषिका ज्यादा थी, इस कारण से समाचार चैनलों की सुर्खियाँ भी बनी और इस तरफ लोगों का ध्यान भी आकृष्ट हुआ. इतना कुछ होने के बाद भी इस समस्या के स्थायी निराकरण के तरफ किसी का ध्यान ना जा रहा हैं ना जायेगा. समस्या रहेगी, तब ना राजनीति की जा सकती हैं,पैसे बनाये जा सकते हैं.
बाढे हर साल आती रहेगी. जाती रहेगी. राजनीति होती रहेगी. पिसना तो आम जनता को हैं. आँकडों में लोग गिने जाते रहे हैं और यह गिनती हरसाल बदस्तूर जारी रहेगी. भगवान के आसरे ही जनता को इस देश में रहना लिखा हैं तो किया भी क्या जा सकता हैं. जैसे चल रहा हैं देश चलने दिया जायें. यह सोच ही राजनेताओं के स्वास्थ्य के लिये ठीक हैं, इस लिये कुछ नही किया जा रहा हैं सिवाए बयानबाजी के.