शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

क्रिकेट विश्व कप फिर से ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में

23 साल बाद क्रिकेट विश्व कप का आयोजन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में फिर से होने जा रहा है। 1992 में जब पहली बार दक्षिणी गोलार्द्ध में क्रिकेट विश्व कप का आयोजन हुआ था, तो काफी चीज पहली बार हो रही थी। पहली बार रंगीन कपड़ों में क्रिकेट टीमों का मैदान पर आना, उजले क्रिकेट बॉल और काले साइडस्क्रीन का प्रयोग होना- इस विश्व कप के खास आकर्षणों में से था। फ्लड लाइट की दूधिया रोशनी में मैचों का आयोजन होना और फील्डींग रेस्ट्रीकशन का लगना भी पहली बार विश्व कप में हुआ था। एक नई टीम दक्षिण अफ्रीका का उस वक्त एक लंबे अंतराल के बाद आना- अजीबोगरीब लगा था, लेकिन इस नई टीम ने आने के साथ अपने शानदार प्रदर्शन से विश्व कप में बड़ी-बड़ी टीमों को बुरी तरह से डरा दिया था। सेमीफाइनल में बारिश के कारण 13 गेंद में 22 रन के बदले मिले नए लक्ष्य 1 गेंद में 21 रन ने जहां दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट प्रेमियों को निराश किया वहीं एक नए नियम की ओर सोचने के लिए मजबूर किया, तब जाकर कहीं डकवर्थ-लुईस नियम का जन्म हुआ।

अपने कई नए अनोखे प्रयोगों के कारण 1992 के विश्व कप ने क्रिकेट प्रेमियों को अपनी ओर खींचा था, वहीं 2015 में होने वाले विश्व कप पर क्रिकेट प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करने का खासा दबाब रहेगा। 23 साल में परिस्थितियां काफी बदली है। अब टी-20 विश्व कप, आईपीएल और ऐसी ही कितनी क्लब प्रतियोगिताओं ने दर्शकों को अपनी ओर खींचा हैं। दर्शकों को तीन घंटे में मैच का परिणाम देखने को मिल जाता है। कुछ नए नियम, कुछ नए प्रवर्तन ही विश्व कप को रोचक बना सकते है।

1992 विश्व कप प्रतियोगिता में पहली बार न्यूजीलैंड ने जहां स्पिनर से गेंदबाजी का आगाज करवाया, वहीं सलामी बल्लेबाज के द्वारा आतिशी खेल की शुरूआत की नींव भी इसी विश्व कप में मार्क ग्रेटबैच के द्वारा रखी गई। न्यूजीलैंड के सलामी बल्लेबाज के रूप मिले मौके को मार्क ग्रेटबैच ने काफी भुनाया।


विश्व कप में पहली बार राउंड रॉबिन लीग को हटाकर लीग राउंड में सभी देशों को एक-दूसरे से भिड़ना पड़ा। जिसका खामियाजा अच्छी टीमें को भुगतना पड़ा और अंततः पाकिस्तान चैंपियन बनकर उभरा।
 

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

अच्छे दिन कब आयेंगे....

' परिवर्तन संसार का नियम है ' - सुनते रहे है बचपन से, और देखते भी। महसूस करना  भी इसी कड़ी का हिस्सा है। पिछले तीन महीनों में सभी स्तरों पर काफी परिवर्तन आया है। सबसे पहले तो देश में सत्ता का परिवर्तन हुआ। 'अच्छे दिन' लाने वाले चुके है। ' अबकी बार, मोदी सरकार' का नारा लगाने वाले मोदी सरकार बनते देख चुके है। महंगाई, भ्रष्टाचार से तंग चुकी जनता ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को चलता किया और उसकी जगह भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को सत्ता में ला दिया। देखने में ये बाहरी बदलाव लग रहा है, लेकिन बदल कुछ नहीं रहा है। महंगाई जस की तस बनीं हुई है। नई सरकार कहती है- पुरानी सरकार ने इन नीतियों को हरी झंडी दे दी थी, सो हम लागू कर रहे है। कल पेश हुए रेल बजट में भी कोई खास दम नहीं था। किराया भाड़ा 28 जून को ही बढ़ा दिया गया था, सो ये भाड़ा- इस बजट का हिस्सा नहीं बन सका। एक तरह से केंद्र में भाजपा की सरकार- कांग्रेस सरकार की स्थानापन्न है। खैर, इतनी जल्दी अच्छे दिन की उम्मीद करना भी बेमानी होगी। अभी आम बजट भी पेश होेने वाला है। महंगाई और भ्रष्टाचार से पहले ही अर्थव्यस्था पूरी तरह से टूटी हुई है। इसे पटरी पर लाने के लिए बिटर पिल्स की जरूरत है, और इस बिटर पिल्स को खाएगा कौन? आम जनता। और इस पर ऐश कौन करेगा- ये जनता भलीभांति जानती है। जनता ये भी जानती है, हर हाल में उसे ही महंगाई का बोझ सहना है, हर हाल में उसे ही भुगतना है। उसके लिए कोई परिवर्तन नहीं आया है। पहले भी महंगाई थी, अब भी महंगाई है। किसी ना किसी रूप में आम जनता को अपना जीवन जीना है, ये संसार में उसके रहने का नियम है। भले परिवर्तन हो या ना हो- अपना अस्तित्व बनाए ऱखने के लिए आम जनता को मेहनत करना पड़ता है- ये संसार का नियम है। (0211)

रविवार, 23 मार्च 2014

दो साल में हुए नक्सली हमले

-- 11 मार्च 2014: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की जिरम घाटी में माओवादी हमले में 15 जवानशहीद हुए जवानों में 11 सीआरपीएफ के और चार राज्य पुलिस के जवान हैं। इनके अलावा एक स्थानीय नागरिक की भी मौत हुई है।
-- 28 फरवरी 2014:  छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली मुठभेड़ में 6 पुलिसकर्मी शहीद

-- 9 फरवरी 2014: छत्तीसगढ़ के सुकमा में बारूदी सुरंग हमले में सीआरपीएफ के दो अधिकारी शहीद और 12 जवान घायल

-- 25 मई 2013 : छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों के कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर हमले में कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा और नंदकुमार पटेल समेत 25 लोगों की मौत, 19 अन्य घायल

-- 18 मई 2013: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में एक मुठभेड़ में एक जवान और 8 ग्रामीणों की मौत

-- 12 मई 2013: छत्तीसगढ़ में जगदलपुर में दूरदर्शन केंद्र पर हमले में 3 पुलिसकर्मी शहीद

-- 18 अक्टूबर 2012: बिहार के गया जिले में बारूदी सुरंग हमले और गोलीबारी में सीआरपीएफ के 6 जवान शहीद और डिप्टी कमांडेंट सहित 8 पुलिसकर्मी घायल

-- 13 मई 2012: छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम के संयंत्र के पास नक्सली मुठभेड़ में सीआईएसएफ के 6 जवान शहीद

-- 21 अप्रैल 2012:  छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कलेक्टर के अपहरण के दौरान 2 पुलिसकर्मी शहीद

-- 20 अप्रैल 2012: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में बारूदी सुरंग धमाके में तीन लोगों की मौत, भाजपा विधायक और कलेक्टर बाल-बाल बचे

-- 14 मार्च 2012: छत्तीसगढ़ के कांकेड़ में बारूदी सुरंग धमाके में सीमा सुरक्षा बल के 4 जवान

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

वापस आ रहा हूं..

न जाने २०११ में क्यूं कुछ लिख ना सका, इस साल २०१२ में बहुत बातें कहनी है, करनी है अपने इस निशब्द के माध्यम से...

मंगलवार, 9 मार्च 2010

हॉकी का हाशिये पर जाना.......

हॉकी विश्व कप की सेमीफाइनल की दौड़ से भारत अपने तीसरे लीग मैच में हारने के साथ ही बाहर हो गया था। पाकिस्तान के खिलाफ शानदार जीत के साथ टूर्नामेंट की शुरूआत करने वाली मेजबान टीम का मैच दर मैच ऐसा हश्र होना कोई अचंभे वाली बात नहीं थी। विश्व कप जैसे प्रतिष्ठित मुकाबले के शुरू होने से ठीक पहले ही पैसे के विवाद को लेकर भारतीय हॉकी टीम ने अभ्यास करने से इंकार कर देना, शीर्ष चार खिलाड़ियों के बीच कप्तानी को लेकर तनातनी,विश्व कप से पहले किसी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले का ना होना - इन सब कारणों से टीम से कप की उम्मीद लगाना जायज नहीं था।
भारतीय हॉकी टीम का समर्थन करने वाले घरेलू दर्शकों को एक मैच की जीत के बाद बाकी मैचों में हार के कारण निराशा का सामना करना पड़ा। हालांकि विश्व कप के दौरान दर्शकों की भीड़ जुटाने के लिए आयोजकों द्वारा एड्-कैंपेन चलाया गया था। क्रिकेटर विरेन्दर सहवाग, अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और शूटर राजवर्धन सिंह राठौड़ का सहारा लेना पड़ा, वो भी देश के राष्ट्रीय खेल के लिए भीड़ जुटाने के लिए- ये अपने आप में खेल के प्रति दर्शकों की उदासीनता का प्रतीक है और तो और, अभी तक विश्व कप के दौरान बाकी मैचों में दर्शकों की उपस्थिति भी काफी कम ही दिखी। दर्शक-दीर्घा में मुख्य रूप से विदेश में रहने वाले भारतीय लोगों ने ही मैच देखने में रूचि दिखायी। कुछ पूर्व हॉकी खिलाड़ियों ने भी मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम में आकर अपने ही देश में अपने खेल का बुरा हाल होते देखा और साथ ही हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के बूत को स्टेडियम के बाहर देख पुरानी सुनहरी यादों को कुछ पल के लिए याद किया।

पिछले दो साल से भारतीय हॉकी के साथ जो बाहरी खेल खेला जा रहा है- ये बात किसी से छुपी नहीं है। अच्छे खेल प्रशासक की कमी से जूझता राष्ट्रीय खेल भले ही अपने इतिहास पर गर्व कर ले, लेकिन कब तक इतिहास की सुनहरी यादों के भरोसे ही भविष्य की तस्वीर बनाते रहेंगे।

भारतीय टीम को एक पेशेवर कोच के रूप में स्पेन के कोच होसे ब्रासा को नियुक्त करने की सलाह अंतर्राष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष लिनदरो नेग्रे ने ही दिया था, लेकिन वो भी कुछ कमाल ना दिखा सके। वैसे इससे पहले दो साल के भीतर टीम इंडिया ने दर्जनों कोच को आजमा कर देख लिया था। स्पेन की महिला टीम को ओलंपिक चैंपियन बनाने वाले ब्रासा से करिश्मे की उम्मीद तभी करनी चाहिए थी जब अपने खिलाड़ी खेल को खेल की तरह खेलते।

कुल मिलाकर भारतीय टीम ने विश्व कप के दौरान अपने खेल से खेल-प्रेमियों को निराश ही किया। सेमीफाइनल में ना पहुँचने की टीस को आगामी राष्ट्रमंडल खेल के दौरान अच्छा खेल खेलकर दूर किया जा सकता है और इसके लिए टीम के पास अभ्यास करने के लिए अच्छा समय भी है और मौका भी। अगर टीम अपना पुराना गौरव हासिल करना चाहती है तो पौराणिक फिनिक्स पक्षी के भांति अपनी राख से ही फिर से उत्पन्न होना होगा।

सोमवार, 8 मार्च 2010

महिला दिवस के दिन भी महिला आरक्षण कानून करता रहा इंतजार

महिला आरक्षण बिल कानून बनने का 13 साल से इंतजार कर रहा है। आखिरकार राज्य सभा में आज 100वें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर देश की विधायिका में महिलाओं का 33।3 प्रतिशत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाला बिल पेश कर ही दिया गया। तेरह साल के लंबे जद्दोजहद के बाद महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाने और सुनिश्चित करने का सुनहरा मौका मिलने वाला है।

बिल का अस्तित्व में आना- संसद और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं को 33.3 प्रतिशत आरक्षण देने वाला यह विधेयक एच.डी.देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा (यूनाईटेड फ्रंट ) सरकार के कानून मंत्री रमाकांत खलफ ने 12 सितंबर 1996 को लोकसभा में पेश किया था। इसे वाम नेता गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया। इस बिल को संसद में कई बार पेश किया गया था लेकिन आज तक पारित नहीं किया जा सका है। गुजराल सरकार के कार्यकाल में उनके अपने ही दल के सदस्यों ने इसका विरोध किया। एनडीए शासनकाल में भी बिल को दो बार - 1998 और 1999 में संसद में पेश किया गया, लेकिन इसे कामयाबी हासिल ना हो सकी। 1999 में तो तब के कानून मंत्री राम जेठमलानी ने जब इस बिल को पेश करना चाहा तो राजद के एक सांसद ने बिल को उनके हाथ से छीन लिया। इसी तरह जब 2008 में कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने राज्यसभा में लाना चाहा तो उन्हें कांग्रेसी नेता वी। नारायणसामी और रेणुका चौधरी ने घेर लिया था ताकि यह घटना फिर ना दोहरायी जा सके।

बिल के प्रावधान- इस बिल के आने से विधायिका के सभी स्तर- लोकसभा, राज्य विधान सभा से लेकर स्थानीय निकाय तक तीनों स्तर में महिलाओं को 33।3 प्रतिशत आरक्षण मिल जाएगा। अगर यह बिल पारित हो जाएगा तो राष्ट्रीय , राज्य और स्थानीय स्तर पर विधायी स्तर पर सभी उपलब्ध सीटों का एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएगा। इसमें एक-तिहाई आरक्षण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के महिलाओं के लिए भी होगा।

आज राज्यसभा में भी बिल पेश करने के दौरान कुछ सांसदों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। इस बिल का विरोध करने वाले दलों को इस बात का डर है कि अगर इसे वर्तमान स्वरूप में पास किया गया तो उनके कई नेताओं को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सकेगा। पिछड़े और कमजोर तबकों से आनेवाले नेताओं का मानना है कि यह बिल सिर्फ उच्च वर्ग की महिलाओं को ही फायदा पहुँचायेगा।

लेकिन इसका समर्थन करने वालों का मत है कि इससे संसद में लिंग-समानता को बढ़ावा मिलेगा। वैसे भी भारत में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है और इस प्रकार मिलनेवाली राजनीतिक सहभागिता उनकी स्थिति में व्यापक सुधार लाएगी, साथ ही साथ अब तक उन्हें जो भेदभाव का सामना और असमानता देखी है उससे लड़ने में मदद मिलेगी।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

Sachin Ton(dual)kar

सचिन २०० नॉट आउट..... दिल तो बच्चा है जी


ग्वालियर के रूपसिंह स्टेडियम में सचिन तेंदुलकर ने 50 वें ओवर की तीसरी गेंद पर जब दौड़ कर एक रन लिया.. तो 39 साल से चला आ रहा क्रिकेट-प्रेमियों का एक बड़ा सपना पूरा हो गया- वन-डे क्रिकेट में किसी एक खिलाड़ी के बल्ले से 200 रन बनने का सपना। और जब यह कारनामा क्रिकेट के भगवान... और ना जाने किन-किन विशेषणों से अलंकृत...... सचिन तेंदुलकर के बल्ले से हुआ तो क्रिकेट प्रेमियों ने राहत की साँस ली। अभी हाल में ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रन की पारी खेलने वाले सचिन से यह उम्मीद उनके उम्र के 37वें पड़ाव में करना इतना आसान नहीं था। पिछले साल ही जिम्बाब्वे के चार्ल्स कोवेंटरी ने जब सईद अनवर के सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर का रिकार्ड की बराबरी करते हुए अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कराया था... तब भी यह एक सपना ही था।
तेरह साल पहले 1997 में सईद अनवर ने भारत के खिलाफ 194 रन का रिकार्ड बनाया था। उससे पहले भी यह रिकार्ड भारत के खिलाफ तेरह साल पहले विवियन रिचर्ड ने 1984 में 189 रन बनाकर स्थापित किया था।
194 रन का रिकार्ड तो लिटिल मास्टर ने 46वें ओवर में ही तोड़ दिया था, उसके बाद सबकी नजर उन रनों पर थी जिसे इतिहास के पन्नों में दर्ज होना था। ऐसे वक्त में एक या दो रन लेकर 200 तक पहुँचना- जितना हमारे लिए सुकून पहुँचाने वाला था, उतना ही मास्टर ब्लास्टर के लिए भी। फिर तो शुरू हो गया बधाई देने का सिलसिला। मोबाइल पर संदेश आने लगे। निजी खबरिया चैनलों के लिए तो रेल बजट पर सचिन का 200 रन की बोगी भारी पड़ गयी। यह अलग बात है कि ममता दीदी ने भी सचिन को बधाई दी, लेकिन सचिन ने अखबार की सुर्खियों से लेकर टीवी चैनल की लीड स्टोरी सभी जगह ममता बनर्जी की बजट की छुट्टी कर दी।
खेल के प्रति इतना जुनून निश्चय ही आने वाली पीढ़ी के युवा खिलाड़ी के लिए पाना एक कठिन चुनौती होगी। सचिन का 20 वर्षों तक खेलना... यह भी अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है। श्रीकांत, कपिल देव और रवि शास्त्री से लेकर आज के दिनों में पदार्पण करने वाले युवा खिलाड़ी भी आने वाले दिनों में अपने पोते-पोतियों को बताया करेंगे कि मैं भी सचिन के साथ खेल रखा हूँ। सचिन के समकालिक खिलाड़ियों की सूची बनायी जाएगी तो यह इतनी लंबी होगी कि जिसमें विश्व के कितने खिलाड़ी आ जायेंगे। अब जब सचिन इतने अच्छे फार्म में है तो हमारा भी मन करता है कि वो अभी और खेले.. लेकिन वो भली-भाँति जानते है कि कब उन्हें बल्ला टाँगना है और कब उनकी फिटनेस लेवल उनका साथ नहीं देने वाली है।
अब कल की ही बात लीजीए.. जब 50 ओवर पूरे खेलने के बाद जब प्रेजेंटेशन सेरेमनी में कमेंटेटर रवि शास्त्री ने पूछा कि ऐसी इनिंग अब आप और खेलना चाहेंगे। तब सचिन ने कहा था कि 50 ओवर की ऐसी पारी खेलने का मौका मिला तो जरूर खेलूँगा। अब भी सचिन का दिल खेलने के बच्चा है। और जब तक ये बच्चा यूँ ही खेलते रहेगा.... खेल-प्रेमियों के लिए तो चाँदी ही चाँदी है।
( पिछली बार ग्वालियर के रूप सिंह स्टेडियम में सचिन शतक से चूके थे तो एक ब्लॉग लिखा था। अब जाकर इसी स्टेडियम में इतिहास लिखना, उस दर्द को भूलाने जैसा है। लिंक है- http://nisshabd.blogspot.com/2007/11/blog-post_16.html)