शनिवार, 22 दिसंबर 2007

फिर खिला कमल

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ एक बार पुनः सत्ता पर काबिज हुई.इसे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत माना जा रहा हैं,जो सही भी हैं.तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एक बार पुनः जीत हासिल करना अपने आप में एक बडी बात हैं.भारतीय प्रजातंत्र में पहली बार विकास के मुद्दे पर कोई सरकार जीतकर पुनः सत्ता में आयी है,वैसे भी भाजपा का वापस सत्ता में आने का रिकॉर्ड ना के बराबर हैं.इस चुनाव के परिणामों का भारतीय राजनीति और भाजपा के अंदरूनी राजनीति पर भी दूरगामी प्रभाव पडेगा.इस जीत के साथ भाजपा जहाँ केंद्र की राजनीति में अपने हमले तेज करेगी वहीं अगले साल जो भाजपा शासित राज्य विधान सभा चुनाव में जाने वाले हैं,वहाँ पर भाजपा बागियों की अब दाल नहीं गलने वाली हैं.गुजरात में निश्चय ही मोदी का कद और बढा हैं.विकास के मुद्दे के साथ साथ चुनाव प्रचार के दौरान कॉग्रेस ने ही भाजपा को बैठे बैठे हिन्दुत्व का मुद्दा दे दिया था.इस चुनाव से एक बात और सामने आयी मीडिया जितना मोदी के खिलाफ बोला,मोदी को उतना ही फायदा हुआ."वाइब्रेटिंग गुजरात" का स्लोगन इस बार इंडिया शाइनिंग की तरह फ्लॉप साबित नहीं हुआ,क्योंकि यह इस बार इंडिया शाइनिंग की तरह मुख्य मुद्दा नहीं रहा.जहाँ तक नरेंद्र मोदी की बात हैं, इस बार एक क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में उनका उदय हुआ हैं.केंद्र की राजनीति से वे दूर ही रहेंगे.भाजपा के लिये यह जीत काफी अहम साबित होगी.आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र की कमजोर सरकार के विकल्प के रूप में भाजपा अपने आप को रखेगी.

बुधवार, 12 दिसंबर 2007

क्या ऐसे ही टीम जीतेगी डॉउनअंडर में

भारत ने पाकिस्तान से टेस्ट श्रृंखला भले ही १-० से जीती हो,लेकिन इसका परिणाम कम से कम २-० तो होना ही चाहिये.बेंगलुरू टेस्ट हम जीतने के करीब थे,लेकिन खराब रौशनी के कारण हम यह मैच नही जीत सके.पाकिस्तान की कमजोर ऑकी जाने वाली टीम श्रृंखला में दो मैंचों को बल्लेबाजी के कारण ड्रॉ करवाने में सफल रही. पूरी श्रृंखला में बल्लेबाज छाए रहे.शतकों की झडी लगी रही.बडे बडे शतक लगे. गेंदबाजी दोनों टीम के तरफ से दोयम दर्जे की रही.
भारत के प्रदर्शन की बात करे,तो कुछ खास प्रदर्शन नही रहा.आगामी टेस्ट श्रृंखला में भारतीय टीम को ना तो इस तरीके की बॉलिंग अटैक का सामना करना पडेगा,ना ही ऐसी पिच मिलेगी.अगर इसी तरह का एप्रोच रहा तो टीम को डॉउनअंडर में काफी मुश्किलों का सामना करना पडेगा.बल्लेबाजी तो कमोबेश ठिक हैं,लेकिन बॉलिंग अटैक की बात करे तो कही से भी गेंदबाजी में धार नही दिखायी देती हैं.वैसे भी सभी तेज गेंदबाज अभी फिट नही हैं,साथ ही ब्रांड नयी अटैक पर विश्वास नहीं किया जा सकता हैं.
श्रृंखला से यह बात सामने निकल कर आयी कि भले ही पुराने शेर २०-२० मैच नही खेल रहे हो लेकिन टेस्ट मैचों में उनका स्थान लेना इतना आसान काम नही हैं.सौरभ,लक्ष्मण के साथ साथ जाफर और युवराज ने जहाँ बल्ले से कमाल दिखाया, वही इशांत ने अपने पहले ही मैच में ५ विकेट लेकर अपने चयन को सही बताया.इरफान ने बल्ले से कमाल तो दिखाया लेकिन पिछले ऑस्ट्रेलियाई दौरे की तरह गेंदबाजी में जौहर दिखाने से चूक गये.कार्तिक ने कीपिंग से जहाँ सभी को निराश किया वही बल्ले से भी कुछ नही कर दिखाया. इसलिए भारत के सामने ओपनिंग बल्लेबाज की समस्या बनी हुयी हैं.गौतम गंभीर को मौका मिलने की पूरी उम्मीद हैं क्योंकि एक तो वो खब्बू बल्लेबाज हैं और दूसरे स्पेशलिस्ट ओप्निंग बल्लेबाज हैं.
पाकिस्तान के खिलाफ १-० से मिली जीत भारतीय टीम का मनोबल बढाने के लिये नाकाफी हैं.जब अपनी ही धरती पर इतना खराब परिणाम सामने आया तो बॉक्सिंग डे से शुरू होने वाली टेस्ट श्रृंखला के लिये भारत को अभी से ही कमर कस लेनी चाहिए. ऑस्ट्रेलिया टीम जहाँ अपने द्वारा सर्वाधिक टेस्ट जीतने का नया रिक़ॉर्ड कायम करना चाहेगी वही भारतीय टीम पिछली बार की तरह अगर श्रृंखला बराबर भी करवा लेती हैंतो यह भारत के लिये जीत होगी.

मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

आई आडवाणी की बारी

भारतीय जनता पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिये पार्टी में नंबर दो माने जाने वाले नेता लाल कृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया हैं.इस तरह काफी दिनों से चले आ रहे उन सभी अटकलों पर विराम लगा दिया गया कि पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद कौन प्रधानमंत्री पद के लिये भाजपा का चेहरा होगा.इस घोषणा के समय की बात करें तो यह एक ऐसे समय की गयी हैं जब कुछ ही घंटों में गुजरात में पहले चरण का मतदान होने जा रहा था.साथ ही साथ वाम दलों द्वारा परमाणु करार पर समर्थन वापस ले लेने की स्थिति में मध्यावधि चुनाव की संभावना बनती दिखायी दे रही हैं.
भाजपा की सितंबर माह में भोपाल में संपन्न हुयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे पर उस वक्त विराम लग गया था जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने को उस समय राजनीति में सक्रिय होने की बात कही थी. इस समय अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुये राजनीति में अब सक्रिय भूमिका नही निभा पाने की बात कही,उसी आलोक में यह निर्णय लिया गया.
गुजरात में पहले चरण के मतदान से कुछ घंटे पूर्व इस घोषणा के कई मायने हो सकते हो सकते हैं. गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की अनुपस्थिति से यह चुनाव मोदी केंद्रित हो गया.इससे भाजपा की छवि मोदी के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गयी. नरेंद्र मोदी की छवि एक कट्टर हिन्दूवादी नेता की हैं,उस छवि से बाहर निकालने का प्रयत्न है केंद्र स्तर पर लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी नेता घोषित करना.साथ ही आडवाणी भी गुजरात से ही आते है,अतः वोटरों के मन में यह बात भी बैठाना कि केंद्र स्तर पर भी भाजपा का प्रतिनिधित्व उनके ही राज्य का व्यक्ति करेगा.
इससे पहले केंद्र स्तर पर जब भाजपा में वाजपेयी और आडवाणी में तुलना की जाती थी तो आडवाणी को ज्यादा हार्डलाइनर माना जाता था.बदलती परिस्थितियों में समय समय पर अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीति से संन्यास लेने की खबर से नेतृत्व का सवाल खडा हो गया था. एन.डी.ए. के घटक दलों द्वारा आडवाणी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार ना माने जाने की स्थिति में भाजपा में ही नेतृत्व को लेकर कलह सामने आया. लेकिन अब स्थिति स्पष्ट हैं.इसमें देर करना भाजपा के लिये समस्या खडा कर सकती थी.लेकिन यह घोषणा चुनाव के बाद भी की जा सकती थी.
प्रधानमंत्री पद के लिये लाल कृष्ण आडवाणी को भाजपा का उम्मीदवार बताया जाना भले ही पार्टी का अंदरूनी मामला हो सकता हैं लेकिन आने वाले आम चुनाव में एन.डी.ए. के घटक दलों के लिये इसे स्वीकार करना कठिन भी हो सकता हैं.इससे एक बाद स्पष्ट हैं भाजपा अगला चुनाव हिन्दुत्व के ही मुद्दे पर लडेगी.

भारत की ऊर्जा जरूरते

संयुक्त राष्ट्र की ताजा मानव विकास रिपोर्ट २००७ के अनुसार यदि विकसित देश २०२० ईस्वी तक अपने कार्बन उत्सर्जन में ३० प्रतिशत और २०५० तक ८० प्रतिशत तक की कमी नहीं करते हैं तो जलवायु परिवर्त्तन पर इसका बुरा प्रभाव पडेगा.विकासशील देशों के लिये २०५० तक २० प्रतिशत कमी करने की बात कही गयी हैं.इस समय धनी और विकसित राष्ट्र पूरे विश्व में ५० प्रतिशत कार्बन के उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार हैं.भारत जैसा विकासशील देश कार्बन उत्सर्जन के मामले में अभी विकसित देशों से काफी पीछे हैं.ऐसी स्थिति में भविष्य को देखते हुये भारत को ऐसी कार्बन मुक्त तकनीक का विकास करना चाहिये ताकि हम निर्धारित आर्थिक वृद्धि के लक्ष्य को पा सके. योजना आयोग ने वर्त्तमान में देश में ४०० अरब किलोवाट प्रति घंटे व्यवसायिक ऊर्जा की जरूरत बतायी हैं. इस आधार पर २०३० तक हमें २०,००० अरब किलोवाट प्रति घंटे व्यवसायिक ऊर्जा की जरूरत पडेगी.वर्त्तमान में भारत की ९७ प्रतिशत ऊर्जा की आपूर्ति कोयला,तेल और गैस से होती हैं. ये सभी कार्बनयुक्त ऊर्जा स्रोत हैं.निकट भविष्य में अगर १५% भी कार्बनमुक्त ऊर्जा का उत्पादन करने में सक्षम होता हैं तो यह एक उपलब्धि होगी.ऐसी ऊर्जा उत्पादन के लिये हमारे पास निम्न साधन हैं- पवन ऊर्जा,बायो-ईंधन,जल-विद्युत,नाभिकीय ऊर्जा और सौर ऊर्जा. देश मे कोयला से कुल विद्युत उत्पादन का ५१ प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों की आपुर्ति होती हैं,लेकिन इससे कार्बन उत्सर्जन काफी ज्यादा होता हैं.कोयले से उत्पादित प्रत्येक किलोवाट प्रति घंटे विद्युत वातावरण में एक किलो कार्बनडॉयऑक्साइड की वृद्धि के लिये जिम्मेदार हैं.पवन ऊर्जा के उत्पादन में भारत विश्व में चौथे स्थान पर हैं.यूरोप की अपेक्षा में यहाँ पवन की गति कम होने के कारण हम ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा आवश्यकताओं का मात्र एक प्रतिशत उत्पादन करने में ही हम सक्षम हैं.इसलिये यह अहम भूमिका नही निभायेगा.बायो-ईंधन के रूप में जैट्रोफा,महुआ और एथनोल का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिया किया जाता हैं.लेकिन अभी देश में व्यवसायिक रूप से इस तकनीक का उपयोग होना नही शुरू हुआ हैं.बायो-ईंधन के उत्पादन सुनियोजित तरीके से होता हैं,लेकिन इसके उत्पादन के लिये ख्हद्य उत्पादन से समझौता नहीं किया जा सकता हैं.अभी देश मे तीन करोड हेक्टेयर उपजाऊ जमीन खाली पडी हैं. अगर दो करोड हेक्टेयर जमीन पर भी बायो-ईंधन उत्पादित करने की फसल उगायी जाये,तो दो प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत पूरी करेगा.इसी प्रकार जल-विद्युत भी दो प्रतिशत ऊर्जा उत्पादित करने में सक्षम हैं.भारत में अरूणाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ जल-विद्युत उत्पादन की असीम संभावना हैं.वैसे भारत में पुनर्वास जैसी समस्या इस राह में काफी रोडे अटकाती हैं.

नाभिकीय ऊर्जा भी कॉर्बनरहित ऊर्जा का भविष्य में एक अच्छा स्रोत हो सकता हैं.अभी जो संयंत्र भारत में लगे हुये हैं ,उससे हम ४१२० मेगावाट ही बिजली उत्पादित कर सकते हैं,जो कि कुल विद्युत उत्पादन का केवल तीन प्रतिशत हैं.भारत में यूरेनियम सीमित मात्रा में हैं.अभी देश में त्रि-स्तरीय कार्यक्रम के तहत पहले प्लूटोनियम आधारित ब्रीडर फिर थोरियम आधारित ब्रीडर विकसित किया जायेगा. प्रस्तावित भारत अमेरिकी परमाणु करार से हमें २०३० तक २४००० मेगावाट बिजली ही प्राप्त हो सकेगी.यह अभी दूर की कौडी प्रतीत होती हैं क्योंकि अभी इसके लिये काफी ब्रीडर की जरूरत पडेगी और ब्रीडर के प्रोटोटाइप की सफलता पर भी यह निर्भर करता हैं.

सौर-ऊर्जा भारत के लिये एक काफी अच्छा विकल्प साबित हो सकता हैं क्योंकि भारत के ज्यादा भागों में अच्छी सूर्य की रौशनी पडती हैं.दो करोड हेक्टेयर भूमि पर पडने वाली सूर्य की रौशनी से २४००० बिलियन किलोवाट प्रति घंटे बिजली उत्पादित की जा सकती हैं,जो कि हमारे कुल विद्युत आव्श्यकताओं से ज्यादा ही हैं. अतः यह एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता हैं.लेकिन यह काफी खर्चीली प्रक्रिया हैं.

भारत के सामने आने वाले समय में बिजली उत्पादन के उपरोक्त उल्लिखित स्रोतों पर विचार करना होगा. ऊर्जा जरूरतों के साथ साथ वातावरण को नुकसान ना पहुँचाने वाले विक्लप के विषय मे सोचा जाये तो यह और भी अच्छा होगा

गुरुवार, 6 दिसंबर 2007

बूढे माँ-बाप : कर्ज या फर्ज

उदास चेहरे की झुर्रियों को बरसती आँखे सुना रही थीहमारे सपने को सच करने ज़िगर का टुकडा शहर गया हैं.
जी हाँ,यह त्रासदी हैं उन बूढे माता-पिताओं की जो बडे अरमानों से अपने जिगर के टुकडों को शहरों में पढने के लिये शहर तो भेज देते हैं उनके सपनों को पूरा करने के लिये,लेकिन बाद में यही बेटे पूरी तरह से माता-पिता के द्वारा किये गये बलिदानों को भूल जाते हैं और उनकी कोई खैर खबर नहीं लेते हैं.शहरी चमक-दमक और बंगले और कार के बीच अपने माता-पिता द्वारा दिये गये संस्कारों को भूल जाते हैं.उनके हाल पर उनको छोड देते हैं.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में ओल्ड एज होम की कल्पना करना आज से कुछ दिन पहले तक संभव नही था.लेकिन बदलती परिस्थितियों में इनकी संख्या में बढोत्तरी अपने सामाजिक स्थिति की बदहाल तस्वीर को हमारे सामने रखती हैं.जिंदगी भर हमारे लिये अपना सर्वस्व न्योछवर करने वाले अभिभावकों को उनके जीवन काल की संध्या में हम आश्रय न दे सके यह कितनी शर्म की बात हैं.एकल परिवार की अवधारणा को शहरी संस्कृति में ज्यादा तवज्जों दी जाती है,जिस कारण बच्चों को दादा-दादी या संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों का प्यार नही मिल पाता हैं.वे रिश्तों को ना जानते हैं ना ही उतनी अहमियत देते हैं.आने वाले समय में वे भी माता-पिता के साथ वही व्यवहार करने से नही चूकते,जो उनके माता-पिता अपने माता-पिता के साथ किये होते हैं.
भारत सरकार भी संसद में ऐसा कानून लाने की सोच रही हैं,जिससे बूढे माँ-बाप अपने गुजारे के लिये अपना हक माँग सकते हैं.जब कानून के तहत वसीयत पर बेटे अपना हिस्सा माँग सकते है तो कानूनन ही सही अब बूढे माँ-बाप अपने गुजारे के लिये हक से अपने बेटों से पैसा तो माँग ही सकते हैं.लेकिन ऐसी स्थिति आना कितनी शर्म की बात हैं,जीते-जी कोई माँ-बाप के सामने ऐसी स्थिति आती हैं तो यह तो उनके मरने के समान हैं.बेटों का फर्ज बनता है कि वे अपने बूढे मां-बाप की सेवा तन मन से करे.
भारतीय संस्कृति में ऐसी स्थिति का आना निश्चय ही शर्म की बात हैं.अपने सपनों को साकार करने के चक्कर में अपने जडों को भूल जाये,ये कहाँ की होशियारी हैं.हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमें भी बूढापे से गुजरना हैं,अगर कल वही स्थिति का सामना करना पडे तो यह भी बडी शर्म की बात होगी.

ऐं भाई जरा देख के सडक पार करों...

दिल्ली में सडकों कों पार करते वक्त अब पदयात्रियों को ध्यान रखना होगा कि वे ज़ेब्रा क्रॉसिंग से ही सडक पार करें,साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि उस वक़्त रेड लाइट हो.दिल्ली में सडकों पर दौडती हुई गाडियों के बीच से लोग आसानी से सडक पार कर लेते है.ना रेड लाइट का ध्यान रखते है ना ही ज़ेब्रा क्रॉसिंग का.इससे परेशानी वाहन चलाने वालों को होती हैं.एकाएक वाहन के सामने से गुजरने के कारण ड्राइवरों का ध्यान भंग तो होता ही हैं,साथ ही दुर्घटना भी होने की संभावना रहती हैं.
दिल्ली की सडकों पर भूमिगत पैदल पारपथ यानि कि सब-वे का निर्माण सरकार इसलिये करवाती है कि पैदल यात्री आसानी से सडक के दूसरी ओर चले जाये,लेकिन समय बचाने के चक्कर में पदयात्री ट्रैफिक नियमों की धज्जी उडाने से बाज नही आते.लेकिन अब ऐसा करने से पहले उन्हें सोचना पडेगा. कल दिल्ली की सडकों पर गलत तरीके से सडक पार करने के कारण १८४ लोगों को चालान किया गया.यह मुख्य रूप से पाँच से छह स्थानों पर किया गया.
एक सब-वे बनाने में सरकार को दो करोड रूपये का खर्च आता हैं,लेकिन पब्लिक इसे उपयोग करने के बजाय सडकों के बीच से ही पार करना पसंद करती हैं.सब-वे के अलावा स्वचालित सीढीयुक्त उपरी पारपथ भी आज बनाये जा रहे हैं. आई.टी.ओ. के पास दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने बने ऐसे पारपथ का उपयोग लोग इसलिये ज्यादा करने लगे क्योंकि सडकों के बीच मे बने डिवाइडर पर बडी बडी लोहे की छड खडी कर जाम कर दिया गया हैं.
ऐसे नियमों को लाने से पहले सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सडकों पर जगह जगह पर ज़ेब्रा कॉसिंग होनी चाहिये ताकि पदयात्रियों को सडक पार करने के लिये मीलों दूरी तय नही करना पडे.साथ में इतनी संख्या में पुलिस भी चाहिये ताकि नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंडित किया जा सके.लेकिन यह संभव नही हैं.
सडकों पर होने वाली दुर्घटनाओं के मद्देनजर उठाया गया यह कदम अगर दिल्लीवासियों में थोडा भी सिविक सेंस भी भरने में कामयाब होता हैं तो यह एक अच्छा कदम साबित होगा.

मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

बीजेपी बनाम बीजेपी : भारतीय जनता पार्टी बनाम बागी जनता पार्टी

गुजरात में ३ दिसम्बर को सभी अखबारों में केशूभाई पटेल की तस्वीर लगे एक विज्ञापन ने राज्य में बदलाव लाने की अपील की हैं.इस विज्ञापन को छपवाने से केशूभाई ने भले ही इंकार किया हो लेकिन इसमें छपी बातों से इंकार नहीं किया हैं. गुजरात में बागी भाजपाई किस तरह आगामी चुनाव पर असर डालना चाहते हैं,यह इसका जीता-जागता उदाहरण हैं.
गुजरात में इससे पहले होने वाले चुनावों में कॉग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला होता था ,लेकिन इसबार बागी भाजपा नेताओं ने एक तीसरा कोण इस चुनाव में ला दिया हैं.ये बागी भी बँटे हुये हैं-कोई कॉग्रेस का समर्थन कर रहा हैं,कोई उमा भारती की पार्टी भारतीय जनशक्ति के समर्थन में हैं और कुछ तो ऐसे है जो भाजपा की ही सरकार चाहते है,लेकिन नेतृत्व परिवर्त्तन के साथ.यानि कि इनकी भी स्थिति स्पष्ट नहीं हैं.लेकिन इससे भाजपा को नुकसान होना तय हैं.नुकसान कितना होगा,यह कहना मुश्किल हैं,ऐसा भी हो सकता हैं कि भाजपा की सरकार जा भी सकती हैं.
चुनाव पूर्व करवाए गये सर्वेक्षणों में नरेंद्र मोदी को सर्वाधिक लोकप्रिय नेता और भाजपा के वोटों में कुछ गिरावट के साथ पुनः सत्ता में लौटने की बात कही गयी है.चुनाव जितना नजदीक आते जा रहा हैं,उतने ही बागी सक्रिय होते जा रहे हैं.केशूभाई पटेल ने अखबारों में छपी बातों का एक तरह से समर्थन ही किया है.इस तरह पटेलों का वोट जो की गुजरात की राजनीति में अहम माना जाता हैं,राज्य में किसी की सरकार लाने व गिराने दोनों में सक्षम हैं.चुनाव आते आते बागियों के वार और तेज हो जायेंगे,ऐसी स्थिति में मोदी इन वारों को झेल पुनः सत्ता में आ जाते है तो और भी प्रखर नेता के रूप में भाजपा में अपना स्थान बनायेंगे,अगर सत्ता मे नहीं आ पाते हैं तो हाशिए पर खडे हो जायेंगे,जहाँ से वापसी करना काफी मुश्किल होगा.
यह चुनाव पहले से ही भाजपा बनाम भाजपा के तौर पर लडा जा रहा हैं.यहाँ विपक्ष के रूप में कॉग्रेस इतनी कमजोर हैं कि वह बागियों के बल पर सत्ता में आना चाह रही हैं.ऐसा हो भी सकता हैं क्योंकि इस चुनाव में नुकसान उठाने वाली पार्टी भाजपा ही होगी,अगर कॉग्रेस इस मौके को सही तरीके से भुना सके.वैसे अभी भी इस चुनाव को भाजपा बनाम भाजपा के तौर पर ही देखा जा रहा हैं.छोटी पार्टियाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो जायेंगी,लेकिन तीसरी शक्ति के रूप में उभरेंगी इसकी कम ही संभावना हैं.मोदी का विकास इस चुनाव में उसे सफलता दिलवाता हैं या उसका तानाशाही रवैया उसे राजनीति के हाशिए पर ला खडा करता हैं- यह तो आने वाला समय ही बतायेगा.