मंगलवार, 9 मार्च 2010

हॉकी का हाशिये पर जाना.......

हॉकी विश्व कप की सेमीफाइनल की दौड़ से भारत अपने तीसरे लीग मैच में हारने के साथ ही बाहर हो गया था। पाकिस्तान के खिलाफ शानदार जीत के साथ टूर्नामेंट की शुरूआत करने वाली मेजबान टीम का मैच दर मैच ऐसा हश्र होना कोई अचंभे वाली बात नहीं थी। विश्व कप जैसे प्रतिष्ठित मुकाबले के शुरू होने से ठीक पहले ही पैसे के विवाद को लेकर भारतीय हॉकी टीम ने अभ्यास करने से इंकार कर देना, शीर्ष चार खिलाड़ियों के बीच कप्तानी को लेकर तनातनी,विश्व कप से पहले किसी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले का ना होना - इन सब कारणों से टीम से कप की उम्मीद लगाना जायज नहीं था।
भारतीय हॉकी टीम का समर्थन करने वाले घरेलू दर्शकों को एक मैच की जीत के बाद बाकी मैचों में हार के कारण निराशा का सामना करना पड़ा। हालांकि विश्व कप के दौरान दर्शकों की भीड़ जुटाने के लिए आयोजकों द्वारा एड्-कैंपेन चलाया गया था। क्रिकेटर विरेन्दर सहवाग, अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और शूटर राजवर्धन सिंह राठौड़ का सहारा लेना पड़ा, वो भी देश के राष्ट्रीय खेल के लिए भीड़ जुटाने के लिए- ये अपने आप में खेल के प्रति दर्शकों की उदासीनता का प्रतीक है और तो और, अभी तक विश्व कप के दौरान बाकी मैचों में दर्शकों की उपस्थिति भी काफी कम ही दिखी। दर्शक-दीर्घा में मुख्य रूप से विदेश में रहने वाले भारतीय लोगों ने ही मैच देखने में रूचि दिखायी। कुछ पूर्व हॉकी खिलाड़ियों ने भी मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम में आकर अपने ही देश में अपने खेल का बुरा हाल होते देखा और साथ ही हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के बूत को स्टेडियम के बाहर देख पुरानी सुनहरी यादों को कुछ पल के लिए याद किया।

पिछले दो साल से भारतीय हॉकी के साथ जो बाहरी खेल खेला जा रहा है- ये बात किसी से छुपी नहीं है। अच्छे खेल प्रशासक की कमी से जूझता राष्ट्रीय खेल भले ही अपने इतिहास पर गर्व कर ले, लेकिन कब तक इतिहास की सुनहरी यादों के भरोसे ही भविष्य की तस्वीर बनाते रहेंगे।

भारतीय टीम को एक पेशेवर कोच के रूप में स्पेन के कोच होसे ब्रासा को नियुक्त करने की सलाह अंतर्राष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष लिनदरो नेग्रे ने ही दिया था, लेकिन वो भी कुछ कमाल ना दिखा सके। वैसे इससे पहले दो साल के भीतर टीम इंडिया ने दर्जनों कोच को आजमा कर देख लिया था। स्पेन की महिला टीम को ओलंपिक चैंपियन बनाने वाले ब्रासा से करिश्मे की उम्मीद तभी करनी चाहिए थी जब अपने खिलाड़ी खेल को खेल की तरह खेलते।

कुल मिलाकर भारतीय टीम ने विश्व कप के दौरान अपने खेल से खेल-प्रेमियों को निराश ही किया। सेमीफाइनल में ना पहुँचने की टीस को आगामी राष्ट्रमंडल खेल के दौरान अच्छा खेल खेलकर दूर किया जा सकता है और इसके लिए टीम के पास अभ्यास करने के लिए अच्छा समय भी है और मौका भी। अगर टीम अपना पुराना गौरव हासिल करना चाहती है तो पौराणिक फिनिक्स पक्षी के भांति अपनी राख से ही फिर से उत्पन्न होना होगा।

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