गुरुवार, 5 जून 2008

एक नया आतंकवाद : आर्थिक आतंकवाद

पेट्रोल,डीजल और कुकिंग गैस के दामों में बढोत्तरी होने के साथ ही एक नये टर्म से भी पाला पडा,वो हैं भाजपा के द्वारा दिया गया 'आर्थिक आतंकवाद'.ना जाने इस टर्म का क्या अभिप्राय हैं? समझने की कोशिश चल रही हैं.इसका अर्थ कोई अर्थशास्त्री बतायेंगे या रक्षा-विशेषज्ञ खोज जारी हैं. वैसे कच्चे तेल की बढती कीमतों को देखते हुये ऐसा करना जरूरी था,आखिर कब तक सरकारें सब्सिडी देती रहेगी. ऐसी स्थिति में किसी भी पार्टी की सरकार रहती तो तेल की कीमतों को बढाती ही.चुनावी साल में जब काँग्रेस को सहयोगियों और विपक्षी दलों के विरोध के बाद भी तेल की कीमतों को बढाना पडा,तो किसानों को जो कर्ज माफी दी गयी या लोकलुभावन बजट पेश किया गया सब पर पानी फिर गया.

भाजपा इस मुद्दे को अच्छी तरीके से भुनाने की कोशिश करेगी,बैठे-बैठाये एक मुद्दा जो मिल गया.आगामी आम चुनाव को देखते हुये काँग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार भी काफी दिनों से तेल की कीमतों को टालती आ रही थी,लेकिन जब सार्वजनिक तेल कंपनियों ने दो-तीन महीने के भीतर कैश ना होने की स्थिति में कच्चे तेल ना खरीद पाने की असमर्थता जाहिर की,तब जाकर सरकार ने मजबूरी में यह फैसला लिया. वाम मोर्चा से ऐसी स्थिति में ना विरोध करते बन पा रहा हैं ना समर्थन करते.

तीन,पाँच और पचास के अनुपात में भाजपा को अपनी लोकसभा की सीटें बढती हुयी नजर आ रही हैं. इधर प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर आकर यह सफाई देनी पड रही कि किस स्थिति में हमें यह कदम उठाना पडा, इसकी कोई जरूरत नहीं थी. वाम मोर्चा भी इस मुद्दे से फायदा उठाना चाह रहा हैं,लेकिन सरकार के साथ रहकर.
अंततः तेल व गैस की कीमतें बढ गयी हैं.इस सच्चाई से हम सब वाकिफ हैं,कुछ दिनों में ही इसका असर हमारे रोजमर्रा की जिंदगी पर दिखने लगेगा.नेता राजनीति करते रहेंगे,अपनी जेबें भरते रहेंगे.महँगाई दर डबल-डिजीट को छुएँ, महँगाई के कारण जनता का बुरा हाल हो-इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं हैं.नये जुमले उछाले जायेंगे और हम आम जनता उसी में माथा-पच्ची करते रह जायेंगे.

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