मंगलवार, 10 जून 2008

आज के घरेलू नौकर घरेलू कैसे?

फिल्म 'आनंद' के रामू काका को हम घरेलू नौकर की श्रेणी में रखे तो कुछ बात समझ में आती हैं,लेकिन आज के नौकरों को किस श्रेणी में रखे,जिनकी नजर में घर के कीमती सामान ही सबकुछ होता हैं. इसके लिये वे अपने मालिक की भी हत्या करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं. आए दिन खबरों में नौकरों के द्वारा मालिकों की हत्या की घटनाएँ इतनी आम हो गयी हैं,फिर भी लोग इससे सबक नहीं लेते हैं.
पहले परिवारों में रहने वाले नौकरों के साथ नौकर जैसा व्यवहार ना कर परिवार के आम सदस्य जैसा व्यवहार किया जाता था. सच मायने में हम उन्हें घरेलू नौकर कह सकते थे.पर्व हो या त्योहार, परिवार के सदस्यों की ही तरह उनके लिये भी नये कपडे सिलवाना,उनकी हर जरूरतों का खयाल रखना-ये सब शामिल था. अगर सेवक बुजुर्ग हुये तो उन्हें काका की भाँति सम्मान देना साथ ही साथ उनकी राय को भी सुना जाता था.जिस घर में काम करते उसी घर में सारी जिंदगी बीता देना,कभी ऊँची आवाज में बात ना करना. लेकिन अब ये सब चीजें कहाँ देखने को मिलती हैं.
महानगरों की दौडती भागती जिंदगी में अपने काम के लिये समय ना निकाल पाने की स्थिति में नौकरों पर निर्भरता जरूरी जान पडती हैं. ऐसे में घरेलू नौकर रखे जाते हैं,जिसे की विभिन्न प्लेसमेंट एजेंसियाँ मुहैया करवाती हैं. समय समय पर पुलिस के द्वारा हिदायत देने के बाद भी वेरिफिकेशन का काम पूरा ना होने के बाद भी लोग इन नौकरों को अपने यहां काम पर रख लेते हैं और नतीजा एक सप्ताह से लेकर एक महीने के बीच में ही देखने को मिल जाता हैं.
बुजुर्ग लोग इन नये जमाने के नौकरों का सबसे आसान निशाना बनते हैं.सबसे ज्यादा खबरें बुजुर्गों की हत्या से संबंधित ही आती हैं.एकल परिवार की संकल्पना भी इसमें अहम भूमिका निभाती हैं. महानगरों में माता-पिता से अलग रहने का क्रेज बढता जा रहा हैं,जीवन की संध्या बेला में भी नौकरों के भरोसे रहना पड तो ऐसे औलाद किस काम के.
घरों में नौकर रखने की जरूरत ना पडे,इसका सबसे आसान उपाय हैं कि अपने सब काम स्वयं ही किये जायें.भले ही कम काम हो,लेकिन इससे दूसरे पर निर्भरता तो नहीं रहेगी.धीरे धीरे कर अपने सब काम कर लेने से सेहत भी बनी रहेगी. साथ ही फालतू काम भी नहीं करने पडेंगे.अगर अपने से नहीं संभव हैं तो स्वयं अपने घर में यमराज को आमंत्रण दीजिये,ना जाने कब आपके छोटे-मोटे काम को करते हुये आपका ही काम तमाम कर दें.

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