बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

50 साल का हुआ दूरदर्शन

भारत में पत्रकारिता का इतिहास लगभग डेढ़ सौ साल पुराना है। पत्र-पत्रिका से शुरू होने वाली पत्रकारिता को समय-समय पर नये माध्यमों यथा- रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट ने एक नया आयाम प्रदान किया । इसी कड़ी में दृश्य-श्रव्य माध्यम के रूप में टेलीविजन ने भारत में 15 सितंबर 1959 को आधे घंटे के कार्यक्रम के साथ दस्तक दिया, तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि पचास साल के भीतर टेलीविजन देश में इतना लंबा सफर तय कर लेगा ।

सन् 1959 में जब संयुक्त राष्ट्र के सांस्कृतिक और शैक्षिक संगठन यूनेस्को ने भारत सरकार को बीस हजार डॉलर और 180 फिलीप्स कंपनी के टीवी सेट्स दिए थे तब जाकर भारत में पहली बार इस जादुई बक्से का आगमन हुआ । पहली बार दिल्ली में दूरदर्शन पर आधे घंटे का कार्यक्रम प्रसारित हुआ था, तब से लेकर शुरूआत के दो दशक में इसकी विकास प्रक्रिया काफी धीमी रही । अस्सी के दशक की शुरूआत में एशियाई खेलों के प्रसारण, रंगीन टीवी सेट्स के आगमन और 1983 के क्रिकेट विश्व कप के प्रसारण ने तो लोगों में दूरदर्शन के प्रति एक गजब का आकर्षण पैदा किया । इसी दशक में प्रयोगधर्मिता के आधार पर शुरू हुए तरह-तरह के मनोरंजक, शैक्षणिक ,सामाजिक,धार्मिक कार्यक्रमों की शुरूआत कर दूरदर्शन ने दर्शकों के बीच अपनी गहरी पैठ बनायी । आज भी अगर टीवी धारावाहिकों की बात करे तो हमलोग, बुनियाद, नुक्कड़, मालगुडी डेज जैसे धारावाहिकों ने लोगों का मनोरंजन करते हुए सामाजिक ताना-बाना समझने में मदद की तो वहीं रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिकों ने टीवी की लोकप्रियता और प्रचार-प्रसार में काफी अहम् भूमिका निभायी । सांस्कृतिक पत्रिका के रूप में सुरभि ने दर्शकों की सहभागिता में नए रिकॉर्ड बनाए । भारत एक खोज- जैसे धारावाहिकों ने देश के इतिहास की एक अनुपम तस्वीर प्रस्तुत की । अगर मनोरंजन के कार्यक्रमों की बात रविवार को प्रसारित होने वाली फिल्में और सप्ताह में दो दिन आने वाले फिल्मी गीतों के कार्यक्रम भी दर्शकों को खूब खींचते थे । कृषि-अर्थव्यवस्था वाले देश भारत में किसानों की समस्या को हल करने वाले कार्यक्रम कृषि-दर्शन ने भी किसानों का काफी मार्गदर्शन किया । इन सभी कार्यक्रमों ने उस वक्त दूरदर्शन को संपूर्णता प्रदान करने के साथ-साथ देश के सभी वर्गों की जरूरतों को पूरा करने का काम किया ।

सार्वजनिक प्रसारणकर्ता के रूप में पचास साल पहले एक छोटे से ट्रांसमीटर से अपना कार्यक्रम शुरू करने वाला दूरदर्शन आज के दिन 31 चैनलों का प्रसारण करता है, जिसमें डीडी नेशनल, डीडी न्यूज़, डीडी भारती, डीडी स्पोर्ट्स, डीडी उर्दू और डीडी इंडिया प्रमुख हैं । इसके अलावा ग्यारह प्रादेशिक भाषाओं के चैनल और बारह राज्य नेटवर्क है । आज के दिन दूरदर्शन की अपनी डीटीएच यानि डायरेक्ट टू होम सेवा भी है ।

मनोरंजन के साथ-साथ अगर देश-दुनिया की खबरों से दृश्य-श्रव्य माध्यम पर रू-ब-रू कराने का काम पहले-पहल किसी ने किया तो वह दूरदर्शन ही हैं । 15 अगस्त 1965 को पहली बार समाचार बुलेटिन का प्रसारण किया गया था । प्रतिमा पुरी को देश की पहली समाचार-वाचिका होने का गौरव प्राप्त हैं। अस्सी-नब्बे के दशक में रात 8.40 पर प्रसारित होने वाला बुलेटिन ही हमें सबसे पहले उस वक्त की ताजा-तरीन खबरें देता था । यहाँ तक की उस समय के समाचार-वाचकों के नाम और तस्वीरें भी दर्शकों को अभी तक याद होंगी ।

अपने पचास साल की विकास यात्रा के दौरान दूरदर्शन ने सूचना, शिक्षा ,मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रमों को देने के अलावा नब्बे के दशक में निजी चैनलों के आने के बाद भी अपना क्रमबद्ध विकास जारी रखा । दर्शकों की माँग को देखते हुए मनोरंजन के चैनल के रूप में डीडी मेट्रो , खेल चैनल के रूप में डीडी स्पोर्ट्स और अंर्तराष्ट्रीय दर्शकों के लिए डीडी वर्ल्ड (बाद में चलकर डीडी इंडिया) जैसे चैनल शुरू किए गए । निजी समाचार चैनलों के आने के बाद एक चौबीस घंटे के समाचार चैनल की आवश्यकता महसूस की गयी, इसी को देखते हुए 2003 में डीडी मेट्रो को डीडी न्यूज़ में परिणत कर दिया गया । आज के दिन डीडी न्यूज़ पर 19 घंटे लगातार समाचार और इससे जुड़े कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण होता हैं । जहाँ तक खबरों की विश्वसनीयता की बात है तो आज भी लोगों का भरोसा डीडी न्यूज़ पर ही हैं ।

समय के अनुसार व जरूरत को देखते हुए दूरदर्शन ने अपने को तकनीक और प्रसारण की गुणवत्ता के मामले में अपने को बदलने की हरसंभव कोशिश की हैं । 1982 के एशियाई खेल ने जहाँ देश में रंगीन टेलीविजन के रूप में नयी चीज आयी थी, उसी तरह 2010 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों को एचडीटीवी (हाईडीफीनिशन टेलीविजन) पर प्रसारित किया जाएगा । इस तरह देश में नए सिग्नल पर प्रसारित होने वाले काम को पहली बार डीडी स्पोर्ट्स के द्वारा ही अंजाम दिया जाएगा ।

पिछले पचास साल में लोक-प्रसारक के रूप में दूरदर्शन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है । शुरूआत के दिनों से लेकर नब्बे के दशक के मध्य तक भारतीय दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर इसने एक छत्रराज्य किया । निजी चैनलों के बाढ़ के बाद भी देश के 92 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक इसकी पहुँच हैं । दूरदर्शन आज के दिन भी लोगों की जरूरतों को पूरा करने के अलावा उन्हें सही ढंग से शिक्षित करने के अलावा स्वस्थ मनोरंजन प्रदान कर रहा हैं । अपने व्यावसायिक हितों को दरकिनार रखते हुए दूरदर्शन एक राष्ट्रीय लोक-प्रसारक के रूप में अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है और स्वर्ण जयंती वर्ष में यही आशा करते हैं कि आगे भी अपनी यह भूमिका और अच्छे ढ़ंग से निभाने का काम करेगा ।

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