शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

सीतामढी की छठ

लोक-आस्था के पर्व छठ की धूम बिहार राज्य के किसी भी गाँव-शहर में देखने को मिल जायेगी. बात करते है सीतामढी में लक्ष्मणा नदी के तट पर की जाने वाली सूर्य उपासना की. सबसे पहले तो यह बता दूँ की नदी को आम बोल-चाल की भाषा में लखनदेई के नाम से जाना जाता है.. और नदी के तट पर ही सूर्य मंदिर स्थित है, जिसमे साल भर में कम से कम एक बार तो चहल-पहल रहती ही हैं. सज्जन पूजा समिति हो या छठ पूजा समिति- दोनों समितियां शहर में नदी किनारे घाटों पर, पुल पर साथ ही साथ सड़क पर काफी दूर तक लाइटिंग की व्यवस्था करती है, जिससे की शहर का मुख्य हिस्सा रौशनी से जगमगा उठता है.

घाटों पर सप्ताह-दस दिन पहले से ही लोग अपने अपने एरिया को रेखांकित कर देते है, जहाँ पर वो संझिया घाट और भोरिया घाट पर सूर्य भगवान् को अर्घ्य दे सके. जगह को घेरने के लिए भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. जगह घेर लेने का बाद वहां टेंट लगाना. बड़ी बड़ी चौकियों को ठेले पर लाकर घाट के किनारे लगाना, जिस पर पूजा सम्बन्धी सामग्री डाला में रख इन चौकियों पर करीने से लगाया जाता है. अस्सी के दशक में लोग अपने दुकानों के बैनर बनवाकर टेंट पर लगवा देते थे, जिससे की उनके व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का प्रचार भी हो जाता और सगे सम्बन्धियों को अपना टेंट खोजने में परेशानी भी नहीं होती. लेकिन अब जब की प्रचार की इतनी जरुरत है, ऐसे प्रचार-युग में लोग ऐसा नहीं कर रहे... यह मेरी समझ से बाहर है.

विश्व मैं छठ ही ऐसा एक पर्व हैं जिसमें न सिर्फ उगते हुए, बल्कि डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है। और सबसे पहले डूबते सूर्य की पूजा ही होती है। लखनदेई नदी के दोनों किनारे लगने वाले टेंट में श्रद्धालुओ की भीड़ देखने लायक होती हैं. टेंट में समूह में गीत गाती महिलाएं, बाहर नदी के किनारे वाले इलाके में पटाखे जलाते बच्चे, लाउडस्पीकरों पर बार बार सावधानी से पटाखा छोड़ने की सूचना लोकगीतों और भजनों के बीच आते रहती है. पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता हैं. शाम के वक़्त सूर्य को अर्घ्य देने के बाद जल्दी-जल्दी घर की ओर लौटते लोग.. सुबह जल्दी आने के लिए. वैसे शाम के वक़्त बाज़ार में कुछ खट्टा-मीठा खाने की ललक किरण सिनेमा चौक और उनके आस-पास लगने वाली दुकानॉ पर या बसुश्री सिनेमा के पास लगने वाली नयी दूकानों पर लोगों की भीड़ खींची चली आती है.

सुबह जल्दी उठकर ठण्ड के शुरूआती दिन में स्नान कर घाट पर जाने के लिए घर से निकलते लोग.. घाटों से आती लोक संगीतो की गूँज, रौशनी से जगमगाती सड़के और नदी के किनारे के घाट. पुल से जाकर नदी का नजारा देखते ही बनता है. नए नए कपडो में घाट पर आते लोग. लोगों की संख्या बढ़ने के कारण घाट का विस्तार लीची बगान की तरफ सरस्वती विद्या मंदिर की बिल्डिंग तक और बाईपास वाले पुल की तरफ मोक्ष-धाम के आगे तक टेंट का विस्तार देखते ही बनता है. अब तो एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक जाने में काफी समय लगाने के कारण जाना संभव ही नहीं हो पाता.

हमारे लिए या यूँ कहे की हम युवाओं के लिए घाट के किनारे पुल पर भोरिया अर्घ्य के दिन घूमने के अलावा लिटरली कोई काम नहीं होता था. हाँ, सूर्य के उदय होने के समय जल देकर प्रसाद लेना तो नहीं ही भूलते थे. वैसे भी सज्जन पूजा समिति के उदघोषक की आवाज़ आज भी कानो में ताजा है- बाँध पर श्रद्धालु भीड़ नहीं लगाये, चलते-फिरते नज़र आये. भगवान् भास्कर को जल देने के बाद घाट पर प्रसाद लेने के बाद घर लौटने के क्रम में सबसे पहला काम पैरों को धोने का काम जानकी प्लेस के कल पर धोने के काम करना होता हैं. फिर वापस लौटना.

कुछ ऐसी ही होती है हमारे शहर में छठ पर्व की चहल-पहल. इस बार भी कमोबेश यही चहल-पहल होगी. कर्म-भूमि पर दीपावली मानाने वाले मातृ भूमि पर छठ पर्व मनाने के लिए जरुर जाते है. यही आस्था है. यही लोग है जो कहीं भी हो अपने जड़ो से जुड़े रहने का सबूत हर साल देते ही हैं.

1 टिप्पणी:

Nishant Goenka ने कहा…

छठ : उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने घाटों पर उमड़ी आस्था

Oct 26, 12:57 am


सीतामढ़ी । लोक आस्था के महापर्व सूर्य षष्ठी व्रत का समापन रविवार को उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ हो गया। जिले के प्रत्येक हिस्से में अपार श्रद्धा भक्ति से यह पर्व मनाया गया। रातभर सड़कों व नदी घाटों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। मध्यरात्रि से ही श्रद्धालु अपने छठ घाटों की ओर कूच करने लगे। घाटों पर रातभर अद्भुत छटा बिखरती रही। परम्पराओं से जुड़े लोक गीतों की रिकार्डिग से छठ घाट गूंजते रहे। व्रती महिलाएं भी सूर्य की आराधना के गीत गाती रहीं। सुबह होते ही व्रतियों के बीच पहले अ‌र्घ्य देने की होड़ मच गयी। लोग अ‌र्घ्यदान के लिए एक दूसरे का सहयोग करते दिखे। छठ घाटों पर पूजा समितियों के कार्यकर्ताओं के अलावा वहां तैनात पुलिस कर्मी भी सुरक्षा व्यवस्था में पूरी तरह मुस्तैद रहे। डुमरा के परोरी घाट पर श्री शंकर काली मां दुर्गा पूजा समिति शंकर चौक की ओर से साज-सज्जा व प्रकाश की व्यवस्था की गयी। जबकि नवीन इलेक्ट्रानिक ने व्रतियों के बीच अगरबत्ती का वितरण किया। अन्य घाटों पर भी पूजा समितियों, संस्थाओं व प्रतिष्ठानों की ओर से व्रतियों को कई सुविधाएं दी गयीं। शहर के मेहसौल, बाईपास, मुख्यालय डुमरा के कैलाशपुरी, सीमरा समेत विभिन्न नदी घाटों पर भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। लखनदेई नदी घाट ,बाईपास में नदी-घाटों को दुल्हन की तरह सजाया गया था।