शुक्रवार, 9 मई 2008

जरा सोचिए... क्यूँ जरूरत पडी फिर से सोचने की

हकीकत जैसी, खबर वैसी का राग को छोडते हुये अब जी न्यूज ने सोचने के लिये मजबूर कर दिया,इसको लेकर अब एक नये पंचलाइन "जरा सोचिए" के साथ अपने समाचार चैनल को फिर से नये कलेवर,नये तेवर के साथ प्रस्तुत करने का काम कल रात नौ छप्पन से शुरू हुआ. सूत्रधार के रूप में हिन्दी टी.वी. पत्रकारिता के आज के छात्रों के सबसे बडे ऑयकन पुण्य प्रसून वाजपेयी अवतरित हुये.कार्यक्रम में कन्नूर की घटना को लेते हुये "वोट का अग्निपथ" नामक खबर को बडी खबर बनाया गया.
बात हो रही थी समाचारों की. समाचार चैनलों पर आज के दिन समाचार नहीं दिखाया जा रहा हैं,ऐसी स्थिति में एकबार फिर से जी न्यूज ने समाचार को इस तरह से दिखाने का फैसला किया हैं ,जो कि आम जनता को सोचने पर मजबूर कर देगी.ऐसी उदघोषणा के साथ जी समूह के मालिक सुभाष चंद्रा ने अपने समाचार चैनल को नये कलेवर में पेश किया. कम से कम किसी खबरिया चैनल का मालिक यह तो दर्शकों को आकर कहता हैं कि आज समाचार नहीं दिखाया जा रहा हैं. इससे पहले टाइम्स नाउ के एक कार्यक्रम में भी कहा था.
हिन्दी खबरिया चैनलों को फिर से खबर तो दिखाना शुरू करना ही हैं,कब तक मनोरंजन करवाते रहेंगे.इस सिलसिले में दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह बयान देना कि मीडिया को देश को एक नयी सोच देने में मदद करनी चाहिये ,काफी महत्त्वपूर्ण हैं. आज मीडिया के पास खबरें हैं,ऐसे पत्रकार भी हैं जो कि ऐसी खबरे भी दिखा सकते हैं जो कि आम जनता को सोचने पर मजबूर भी कर सकते हैं,लेकिन रेवेन्यू खोने का डर इतना समाया रहता हैं कि खबरों के साथ न्याय करना भूल गये हैं.
अँग्रेजी चैनलों को तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पडता हैं,इसलिये वे खली और बजरंगबली पर अपने प्राइम टाइम को बर्बाद नही कर सकते हैं. हिन्दी खबरिया चैनलों को भी मन्नु और रंजन के बाप के पीछे नहीं पडकर ठोस खबरों के पीछे पडना चाहिये.कुछ ऐसा विश्लेषण करना चाहिये कि लोगों में एक नयी सोच विकसित हो सके.
जी ने पहल की हैं, देखिये कब तक बाकी चैनल ऐसा करते हैं.वैसे बडी खबर में कन्नूर की घटना पर जितनी निष्पक्षता से कार्यक्रम रखा गया,वाकई प्रयास सराहनीय था.हम भी आने वाले समय में ऐसे ही परिवर्त्तन के वाहक बने.बस इसके लिये सोचने की जरूरत हैं.

कोई टिप्पणी नहीं: