शनिवार, 10 मई 2008

अर्जुन के तीर

मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने जब से राहुल गाँधी में प्रधानमंत्री बनने की योग्यता देखी,तब से ही "चापलूसी और वफादारी" की डिबेट शुरू हो गयी.इसके बाद काँग्रेस के कुछ और नेताओं ने राहुल को प्रधानमंत्री के रूप में देखने को उचित ठहराया.इस बीच प्रवक्ताओं ने भी अपना काम भली भाँति किया,अर्जुन सिंह जैसे कद्दावर नेता के विजन को सिक्फैंसी की संज्ञा दे दी.किसी सिक मानसिकता वाले ने ऐसा बयान दे दिया,नहीं तो सब कुछ तो योजना अनुरूप चल रहा था.राहुल गाँधी ने भी अपने को युवराज कहने को प्रजातांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बतलाया.मीडिया हैं कि मानता ही नहीं,गाहे बगाहे जो आदत पड गयी हैं,वह सामने प्रकट हो ही जाता हैं.कुल मिलाकर पिछले कुछ महीनों की काँग्रेसी खींचतान को देखे तो पाते हैं कि इतिहास में जिस तरह एक वंश में उत्तराधिकारी के नाबालिग होने या अन्य किसी कारणों से केयरटेकर की व्यवस्था कर ली जाती थी,उसी प्रकार की परंपरा को निर्वाह करने के लिये सभी काँग्रेसी दिग्गज उतावले नजर आते हैं.इसी तरह कल फिर से अर्जुन सिंह का यह बयान आना कि पार्टी में अब वफादारी के मूल्यांकन का दायरा काफी सीमित हो गया हैं.यानि कि अब पार्टी में वफादारों की बात सुनी नहीं जा रही हैं और पार्टी चापलूसों से ज्यादा भर गयी हैं,अब उनकी ही ज्यादा चलती हैं.काँग्रेस ने भी उनकी इस टिप्पणी से असहमति जतायी कि निर्णय प्रक्रिया पर सवाल उठाया हैं।
ज्यों ज्यों आम चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं , वफादार काँग्रेसी नेताओं की छटपटाहट बढती जा रही हैं कि किस तरीके से अपनी वफादारी ज्यादा से ज्यादा दिखाये जाये.चापलूसों का अपना दर्द हैं. सत्ता में उन्हें भी तो अपनी भागीदारी चाहिये.आम जनता की बात करने वाली पार्टी किस तरह कुछ खास जनता या परिवार तक सीमित हैं यह बात तो हर कोई जानता हैं.चापलूस भी भली-भांति जानते हैं.तो क्यूँ ना फायदा उठाया जायें. आम जनता का हाथ बस हाथ के साथ में होना चाहिये.अर्जुन के तीर अभी निशाने पर नहीं लग रहे हैं,तो तिलमिलाना जरूरी हैं.पहले तो तीर निशाने पर लगते थे तब तो पार्टी में प्रजातंत्र भी था और वफादारों का सही मूल्यांकन भी होता था.लेकिन अब पार्टी की कार्यशैली भी अच्छी नहीं लग रही हैं. अब तो उन्हें समझ लेना चाहिये कि पार्टी जब युवा नेतृत्व चाह रही हैं,तो टीम भी युवा ही होगी.

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