मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

आई आडवाणी की बारी

भारतीय जनता पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिये पार्टी में नंबर दो माने जाने वाले नेता लाल कृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया हैं.इस तरह काफी दिनों से चले आ रहे उन सभी अटकलों पर विराम लगा दिया गया कि पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद कौन प्रधानमंत्री पद के लिये भाजपा का चेहरा होगा.इस घोषणा के समय की बात करें तो यह एक ऐसे समय की गयी हैं जब कुछ ही घंटों में गुजरात में पहले चरण का मतदान होने जा रहा था.साथ ही साथ वाम दलों द्वारा परमाणु करार पर समर्थन वापस ले लेने की स्थिति में मध्यावधि चुनाव की संभावना बनती दिखायी दे रही हैं.
भाजपा की सितंबर माह में भोपाल में संपन्न हुयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे पर उस वक्त विराम लग गया था जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने को उस समय राजनीति में सक्रिय होने की बात कही थी. इस समय अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुये राजनीति में अब सक्रिय भूमिका नही निभा पाने की बात कही,उसी आलोक में यह निर्णय लिया गया.
गुजरात में पहले चरण के मतदान से कुछ घंटे पूर्व इस घोषणा के कई मायने हो सकते हो सकते हैं. गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की अनुपस्थिति से यह चुनाव मोदी केंद्रित हो गया.इससे भाजपा की छवि मोदी के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गयी. नरेंद्र मोदी की छवि एक कट्टर हिन्दूवादी नेता की हैं,उस छवि से बाहर निकालने का प्रयत्न है केंद्र स्तर पर लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी नेता घोषित करना.साथ ही आडवाणी भी गुजरात से ही आते है,अतः वोटरों के मन में यह बात भी बैठाना कि केंद्र स्तर पर भी भाजपा का प्रतिनिधित्व उनके ही राज्य का व्यक्ति करेगा.
इससे पहले केंद्र स्तर पर जब भाजपा में वाजपेयी और आडवाणी में तुलना की जाती थी तो आडवाणी को ज्यादा हार्डलाइनर माना जाता था.बदलती परिस्थितियों में समय समय पर अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीति से संन्यास लेने की खबर से नेतृत्व का सवाल खडा हो गया था. एन.डी.ए. के घटक दलों द्वारा आडवाणी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार ना माने जाने की स्थिति में भाजपा में ही नेतृत्व को लेकर कलह सामने आया. लेकिन अब स्थिति स्पष्ट हैं.इसमें देर करना भाजपा के लिये समस्या खडा कर सकती थी.लेकिन यह घोषणा चुनाव के बाद भी की जा सकती थी.
प्रधानमंत्री पद के लिये लाल कृष्ण आडवाणी को भाजपा का उम्मीदवार बताया जाना भले ही पार्टी का अंदरूनी मामला हो सकता हैं लेकिन आने वाले आम चुनाव में एन.डी.ए. के घटक दलों के लिये इसे स्वीकार करना कठिन भी हो सकता हैं.इससे एक बाद स्पष्ट हैं भाजपा अगला चुनाव हिन्दुत्व के ही मुद्दे पर लडेगी.

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