मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

भारत की ऊर्जा जरूरते

संयुक्त राष्ट्र की ताजा मानव विकास रिपोर्ट २००७ के अनुसार यदि विकसित देश २०२० ईस्वी तक अपने कार्बन उत्सर्जन में ३० प्रतिशत और २०५० तक ८० प्रतिशत तक की कमी नहीं करते हैं तो जलवायु परिवर्त्तन पर इसका बुरा प्रभाव पडेगा.विकासशील देशों के लिये २०५० तक २० प्रतिशत कमी करने की बात कही गयी हैं.इस समय धनी और विकसित राष्ट्र पूरे विश्व में ५० प्रतिशत कार्बन के उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार हैं.भारत जैसा विकासशील देश कार्बन उत्सर्जन के मामले में अभी विकसित देशों से काफी पीछे हैं.ऐसी स्थिति में भविष्य को देखते हुये भारत को ऐसी कार्बन मुक्त तकनीक का विकास करना चाहिये ताकि हम निर्धारित आर्थिक वृद्धि के लक्ष्य को पा सके. योजना आयोग ने वर्त्तमान में देश में ४०० अरब किलोवाट प्रति घंटे व्यवसायिक ऊर्जा की जरूरत बतायी हैं. इस आधार पर २०३० तक हमें २०,००० अरब किलोवाट प्रति घंटे व्यवसायिक ऊर्जा की जरूरत पडेगी.वर्त्तमान में भारत की ९७ प्रतिशत ऊर्जा की आपूर्ति कोयला,तेल और गैस से होती हैं. ये सभी कार्बनयुक्त ऊर्जा स्रोत हैं.निकट भविष्य में अगर १५% भी कार्बनमुक्त ऊर्जा का उत्पादन करने में सक्षम होता हैं तो यह एक उपलब्धि होगी.ऐसी ऊर्जा उत्पादन के लिये हमारे पास निम्न साधन हैं- पवन ऊर्जा,बायो-ईंधन,जल-विद्युत,नाभिकीय ऊर्जा और सौर ऊर्जा. देश मे कोयला से कुल विद्युत उत्पादन का ५१ प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों की आपुर्ति होती हैं,लेकिन इससे कार्बन उत्सर्जन काफी ज्यादा होता हैं.कोयले से उत्पादित प्रत्येक किलोवाट प्रति घंटे विद्युत वातावरण में एक किलो कार्बनडॉयऑक्साइड की वृद्धि के लिये जिम्मेदार हैं.पवन ऊर्जा के उत्पादन में भारत विश्व में चौथे स्थान पर हैं.यूरोप की अपेक्षा में यहाँ पवन की गति कम होने के कारण हम ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा आवश्यकताओं का मात्र एक प्रतिशत उत्पादन करने में ही हम सक्षम हैं.इसलिये यह अहम भूमिका नही निभायेगा.बायो-ईंधन के रूप में जैट्रोफा,महुआ और एथनोल का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिया किया जाता हैं.लेकिन अभी देश में व्यवसायिक रूप से इस तकनीक का उपयोग होना नही शुरू हुआ हैं.बायो-ईंधन के उत्पादन सुनियोजित तरीके से होता हैं,लेकिन इसके उत्पादन के लिये ख्हद्य उत्पादन से समझौता नहीं किया जा सकता हैं.अभी देश मे तीन करोड हेक्टेयर उपजाऊ जमीन खाली पडी हैं. अगर दो करोड हेक्टेयर जमीन पर भी बायो-ईंधन उत्पादित करने की फसल उगायी जाये,तो दो प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत पूरी करेगा.इसी प्रकार जल-विद्युत भी दो प्रतिशत ऊर्जा उत्पादित करने में सक्षम हैं.भारत में अरूणाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ जल-विद्युत उत्पादन की असीम संभावना हैं.वैसे भारत में पुनर्वास जैसी समस्या इस राह में काफी रोडे अटकाती हैं.

नाभिकीय ऊर्जा भी कॉर्बनरहित ऊर्जा का भविष्य में एक अच्छा स्रोत हो सकता हैं.अभी जो संयंत्र भारत में लगे हुये हैं ,उससे हम ४१२० मेगावाट ही बिजली उत्पादित कर सकते हैं,जो कि कुल विद्युत उत्पादन का केवल तीन प्रतिशत हैं.भारत में यूरेनियम सीमित मात्रा में हैं.अभी देश में त्रि-स्तरीय कार्यक्रम के तहत पहले प्लूटोनियम आधारित ब्रीडर फिर थोरियम आधारित ब्रीडर विकसित किया जायेगा. प्रस्तावित भारत अमेरिकी परमाणु करार से हमें २०३० तक २४००० मेगावाट बिजली ही प्राप्त हो सकेगी.यह अभी दूर की कौडी प्रतीत होती हैं क्योंकि अभी इसके लिये काफी ब्रीडर की जरूरत पडेगी और ब्रीडर के प्रोटोटाइप की सफलता पर भी यह निर्भर करता हैं.

सौर-ऊर्जा भारत के लिये एक काफी अच्छा विकल्प साबित हो सकता हैं क्योंकि भारत के ज्यादा भागों में अच्छी सूर्य की रौशनी पडती हैं.दो करोड हेक्टेयर भूमि पर पडने वाली सूर्य की रौशनी से २४००० बिलियन किलोवाट प्रति घंटे बिजली उत्पादित की जा सकती हैं,जो कि हमारे कुल विद्युत आव्श्यकताओं से ज्यादा ही हैं. अतः यह एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता हैं.लेकिन यह काफी खर्चीली प्रक्रिया हैं.

भारत के सामने आने वाले समय में बिजली उत्पादन के उपरोक्त उल्लिखित स्रोतों पर विचार करना होगा. ऊर्जा जरूरतों के साथ साथ वातावरण को नुकसान ना पहुँचाने वाले विक्लप के विषय मे सोचा जाये तो यह और भी अच्छा होगा

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