गुरुवार, 6 दिसंबर 2007

ऐं भाई जरा देख के सडक पार करों...

दिल्ली में सडकों कों पार करते वक्त अब पदयात्रियों को ध्यान रखना होगा कि वे ज़ेब्रा क्रॉसिंग से ही सडक पार करें,साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि उस वक़्त रेड लाइट हो.दिल्ली में सडकों पर दौडती हुई गाडियों के बीच से लोग आसानी से सडक पार कर लेते है.ना रेड लाइट का ध्यान रखते है ना ही ज़ेब्रा क्रॉसिंग का.इससे परेशानी वाहन चलाने वालों को होती हैं.एकाएक वाहन के सामने से गुजरने के कारण ड्राइवरों का ध्यान भंग तो होता ही हैं,साथ ही दुर्घटना भी होने की संभावना रहती हैं.
दिल्ली की सडकों पर भूमिगत पैदल पारपथ यानि कि सब-वे का निर्माण सरकार इसलिये करवाती है कि पैदल यात्री आसानी से सडक के दूसरी ओर चले जाये,लेकिन समय बचाने के चक्कर में पदयात्री ट्रैफिक नियमों की धज्जी उडाने से बाज नही आते.लेकिन अब ऐसा करने से पहले उन्हें सोचना पडेगा. कल दिल्ली की सडकों पर गलत तरीके से सडक पार करने के कारण १८४ लोगों को चालान किया गया.यह मुख्य रूप से पाँच से छह स्थानों पर किया गया.
एक सब-वे बनाने में सरकार को दो करोड रूपये का खर्च आता हैं,लेकिन पब्लिक इसे उपयोग करने के बजाय सडकों के बीच से ही पार करना पसंद करती हैं.सब-वे के अलावा स्वचालित सीढीयुक्त उपरी पारपथ भी आज बनाये जा रहे हैं. आई.टी.ओ. के पास दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने बने ऐसे पारपथ का उपयोग लोग इसलिये ज्यादा करने लगे क्योंकि सडकों के बीच मे बने डिवाइडर पर बडी बडी लोहे की छड खडी कर जाम कर दिया गया हैं.
ऐसे नियमों को लाने से पहले सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सडकों पर जगह जगह पर ज़ेब्रा कॉसिंग होनी चाहिये ताकि पदयात्रियों को सडक पार करने के लिये मीलों दूरी तय नही करना पडे.साथ में इतनी संख्या में पुलिस भी चाहिये ताकि नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंडित किया जा सके.लेकिन यह संभव नही हैं.
सडकों पर होने वाली दुर्घटनाओं के मद्देनजर उठाया गया यह कदम अगर दिल्लीवासियों में थोडा भी सिविक सेंस भी भरने में कामयाब होता हैं तो यह एक अच्छा कदम साबित होगा.

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