बुधवार, 19 मार्च 2008

राष्ट्रीय पशु,पक्षी और खेल सब खतरे में

बचपन में जब हम नन्हे सम्राट पढा करते थे तो बीच के पृष्ठों में मूर्खिस्तान के दो पन्ने जरूर पढा करते थे,जो कि कार्टून की शक्ल में हुआ करता था.वहाँ भी राष्ट्रीय पशु,पक्षी और खेल हुआ करते थे,ये क्रम से बंदर(?),उल्लू और गिल्ली-डंडा थे.राष्ट्रीय बाघ,मोर और हॉकी से ज्यादा ये हमे अपीलिंग लगा करते थे.लेकिन आज के दिन में वो बात नहीं रही. आज मीडिया में ये हमारे राष्ट्रीय धरोहर कुछ ज्यादा ही सुर्खियाँ बटोर रहे हैं.

सबसे पहले बात करे राष्ट्रीय पशु बाघ की. इस पर तो एन.डी.टी.वी. ने तो 'सेव द टाइगर' कैम्पेन चलाकर बाघ को बचाने की मुहिम ही छेड रखी हैं. बाघ की गिरती संख्या वास्तव में ही चिंता का विषय हैं. डेढ हजार से भी कम संख्या में इनकी उपस्थिति आने वाले समय में पारिस्थितिकी तंत्र पर उल्टा असर डाल सकता हैं. सरकार तो उपाय करने में लगी हुयी ही हैं.

कुछ यही हाल हमारे राष्ट्रीय पक्षी मोर का भी हाल हैं. आज ही सुबह एक टी.वी. समाचार के अनुसार बुलंदशहर में एक आदमी ने पचास मोरो को मारकर दफन कर दिया हैं. इसी तरह कुछ दिन पहले भी एक दृश्य में मरे हुये मोरों को बच्चें हाथ में पकडे हुये दिखाये जा रहे थे,यह खबर किसी दूसरे जगह से थी. मोरों या बाघों को मारकर शिकारी लोग उनके पंखों और खाल की तस्करी करते हैं, जो कि सही नहीं हैं. सरकार भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही हैं.

अब बात करे 'अस्सी साल बनाम सत्तर मिनट' खबर की यानि कि सत्तर मिनट में अस्सी साल का गौरव खत्म करने वाले राष्ट्रीय खेल हॉकी के खिलाडियों की.ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम नजर नहीं आयेगी.चलिये वैसे भी वे वहाँ जाकर क्या उखाड लेते, इससे तो बढिया हुआ कि जाकर सिर्फ बीजिंग घूम कर आते और आठवाँ या नौंवा स्थान में ही संतोष करते.सबसे बडी बात तो यह हुयी कि बहुत सारे लोगों ने इस खबर से यह तो जान लिया होगा कि भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी हैं.

पूर्व हॉकी खिलाडी भी फूले नही समा रहे थे कि जब वो खेला करते तो उन्हें कोई जाना नहीं करता था, अब तो उस दिन हर कोई उन्हें टी.वी. पर देख रहा था और पहचानने कि कोशिश कर रहा था.साथ ही सभी खबरिया चैनलों ने इतना सारा समय हॉकी जैसे खेल पर दिया मानो हॉकी की भी स्थिति वैसी ही हुयी जैसे सौ सुनार की और एक लुहार की. जितना समय हम अपने "नेशनल" खेल को देते है,उतना समय कम से कम एक दिन के लिये तो राष्ट्रीय खेल ने भी तो पा ही लिया. इस बात की खुशी भी पूर्व खिलाडियों को थी.

वैसे हॉकी खिलाडियों का भी कोई दोष भी नही हैं, एक हजार की इनाम राशि एक गोल के लिये वो भी पूरे टीम को,यानि कि "आपके जमाने में बाप के इनाम" पर कैसे एक टीम अपने खेल के प्रदर्शन को सुधार सकती हैं, और हॉकी के मठाधीश इसी तर्ज पर सोने के तमगे की उम्मीद लगाये बैठे थे.तो खिलाडियों ने भी घर पर ही सोना उच्त समझा.

1 टिप्पणी:

सागर नाहर ने कहा…

सचमुच बड़ी चिंता का विषय है मोरों और बाघों का इस तरह शिकार करना। इस तरह से दस साल भी नहीं लगेंगे इन प्रजातियों को नष्ट होने में।
हॉकी के बाए में तो ठीक कहा आपने.. अगल ओलम्पिक चले भी जाते तो पता नहीं कौनसा तीर मार लेते!!
नितेशजी
संभव हो तो मॉडरेशन की सुविधा को हटा देवें।
दस्तक
तकनीकी दस्तक
गीतों की महफिल