शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

प्रेमियों के लिये तो हैं ही वसंत

हर साल १४ फरवरी आती हैं और बीत जाती हैं. एक दशक पहले तो यह एक आम तारीख हुआ करती थी.आयी और गयी.लेकिन इस एक दशक में ही इतना कुछ बदल गया हैं कि सभी इस तारीख का इंतजार किया करते हैं.चाहे प्रेम करने वाले प्रेमी जोडे हो या इस पर पहरा देने वाले हमारे संस्कृति के ठेकेदार. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं वेलेंटाइन डे की,जिसे खास तौर पर विदेश से प्रेम करने वाले दिन के रूप में आयातित किया गया हैं या यूँ कहे कि बाजारवाद ने इसे हम पर थोप दिया हैं.
बात करते हैं प्यार का इजहार करने वाले इस दिन की. संयोग से यह तारीख उस समय पडती हैं जब पूरा वातावरण बसंत के आगोश मे पहले से ही खोया रहता हैं. बसंत तो यूँ ही प्यार का प्रतीक हैं, एक दिन क्यों, हम पूरे महीने प्यार के उत्सव को मना सकते हैं,लेकिन नही मनायेंगे तो इसी खास तारीख को ही.चलिये आज की तेज भागती हुयी जिंदगी में एक ही दिन सही.प्रेमी जोडे को जिस शिद्दत से इस दिन का इंतजार रहता हैं उसी तरह इस दिन का इंतजार उनके प्रेम में खलल डालने वालों को भी रहता हैं,क्योंकि मुफ्त में उन्हे मीडिया का एटेंशन मिल जाता हैं जो कि उनकी राजनीति को चमकाने के लिये काफी जरूरी होता हैं.जगह जगह प्रदर्शन किया, तोड फोड की हो गया उनका वेलेंटाइन विरोध.
इन दोनों वर्गों से भी एक बडा एक वर्ग है जो कि इस दिन का रचयिता हैं यानि की बाजार. कार्डस,फूल,गिफ्ट और ना जाने क्या क्या सभी चीजों की बिक्री आने चरम पर रहती हैं. यह बाजार ही डिसाइड करता हैं कि कैसे अपने स्रोतों का उपयोग कर इस दिन को अपने लिये ज्यादा फायदेमंद बनाया जा सके. मीडिया भी इस चीज में बाजार का खूब साथ देती हैं. टी.वी. चैनलों और एफ.एम रेडियो स्टेशनों में तो सप्ताह बर पहले से ही इस दिन के लिये कार्यक्रमों की रूपरेखा खींच ली जाती हैं. वो स्वयं ऐसा नही करते बल्कि बाजार उनसे ऐसा करवाता हैं.
इस बार तो प्रेम के इस उत्सव को सफल बनाने के लिय जगह जगह प्यार में खलल डालने वालों से बचाने के लिये पुलिस का पहरा लगाया गया था. इस बात की खुशी प्रेमी जोडे के चेहरों पर देखी जा सकती थी.लेकिन उनकी खुशी को भी घर के लोगो के द्वारा जब जासूस लगवाकर मॉनिटर किया जाता हैं तो बात वही पर घूम फिर कर आ जाती हैं क्यों ना हम कितने मॉड बने घूमते फिरते हैं,सोच तो अभी भी भारतीय ही हैं.यही अपनी संस्कृति हैं और अपनी संस्कृति में तो प्रेम के लिये एक दिन नहीं पूरा महीना हैं.महीना क्या, साल हैं बशर्तें कि आप सही से देखे तो.

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