शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

फिल्में भी परिवर्त्तन के वाहक बने तो अच्छा हैं..

सिनेमा समाज का आईना होती हैं.कभी कभी समाज को भी इससे काफी कुछ सीखने को मिलता हैं.आमिर खान की निर्देशक के रूप में पहली फिल्म 'तारे जमीन पर' ने जहाँ सफलता के नये प्रतिमान स्थापित किये वही इस फिल्म से समाज के कुछ क्षेत्रों में बदलाव भी आने शुरू हो गये हैं.फिल्म में डिस्लेक्सिया से पीडित बच्चे को रचनात्मक तरीके से समझाना और उसकी भीतर छिपी हुयी प्रतिभा को बाहर लाना दिखाया गया हैं.
इस फिल्म का समाज पर पडने वाले असर की बात करें तो अभिभावक अब अपने बच्चों की पढाई के प्रति कम रूचि होने के कारणों को खोजने में ज्यादा लग गये हैं. अखबार में छपी एक खबर की बात करे तो अब डॉक्टरों के पास अभिभावक बच्चों को इस लिये लेकर आने लगे कही उनका बच्चा डिस्लेक्सिया बीमारी का शिकार तो नहीं. डॉक्टरों ने भी इस तरह के केसेज बढने के भी संकेत दिये हैं.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानि सी.बी.एस.ई. ने भी इस बार से बोर्ड के परीक्षा में इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को एक घंटा ज्यादा समय देने का फैसला किया हैं.इस तरह हम पाते हैं कि यह सीधा सीधा इस फिल्म का ही असर हैं नही तो इससे पहले इसके विषय में सोचा भी नही गया था.
फिल्मों के माध्यम से अगर इसी तरह भविष्य में समाज और देश के समस्याओं में किसी तरह का सुधार आता हैं तो निश्चय ही यह फिल्मों का एक अच्छा योगदान साबित होगा. मनोरंजन के साथ साथ लोगों के मन-मस्तिष्क को झकझोरने वाली फिल्में हमेशा के लिये एक मिसाल बन जाती हैं.

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