गुरुवार, 10 जनवरी 2008

माइंड गेम से हारी टीम इंडिया

"इंडिया विन सिडनी टेस्ट" शीर्षक वाली खबर द टाइम्स ऑफ इंडिया में देखकर अचंभा हुआ.एक बार तो सहसा विश्वास ही नही हुआ,ये आखिर हुआ कैसे? क्या यह मैच भारत को दे दिया गया या इस शीर्षक के कोई और मायने हैं.हरभजन सिंह पर तीन टेस्ट मैचों की पाबंदी के बाद भारतीय मीडिया ने तो इसे भारत की प्रतिष्ठा का विषय ही बना दिया. देश के सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले चैनलों के लिये अपने प्राइम टाइम का पूरा समय भी दिया जाना कम लग रहा था.अगर अखबार और टेलीविजन चैनलों की बात करे तो दोनों माध्यमों ने अंपायर स्टीव बकनर को लताडने में कोई कोर कसर नहीं छोडी.इतना सब होने के बाद भी हम कहे कि हमने सिडनी टेस्ट जीता हैं तो यह सरासर गलत होगा.
टेस्ट मैच के दौरान पहली पारी में भारतीय टीम द्वारा बढत लेना जब ऑस्ट्रेलियाई टीम को नागावार गुजरने लगा तब उसी समय दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम नें 'माइंड गेम' खेलना शुरू किया और एक वक्त ड्रॉ के तरफ जा रहे मैच को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही.इस बार इस माइंड गेम का शिकार बनाया हरभजन सिंह को और वो इसमें फँस भी गये.हरभजन सिंह ने दूसरी छोड पर बैटिंग कर रहे सचिन से कोई सीख लेने की कोशिश नही की.सचिन को भी कितनी बार स्लेजिंग का सामना करना पडा हैं,लेकिन उसका जवाब हमेशा अपने बल्ले से दिया हैं न कि पलट कर जवाब देकर.हरभजन के बॉडी लैंग्वेज से यही लगता हैं कि साइमंडस की बात का वह जवाब नही देते तो वर्बल मैच तो वे वही हार जाते.पलट कर जवाब देने की कोई जरूरत नहीं थी. ऑस्ट्रेलियाई अपने चाल में कामयाब हो गये.
अगला टेस्ट पर्थ में खेला जाना हैं और उस मैच में भारत को यह साबित करना ही होगा कि सिडनी में अगर अंपायरिंग डिशीजन गलत नहीं होते तो मैच का नतीजा कुछ और ही होता.पर्थ की उछाल भरी पिच पर भारतीय बल्लेबाजों की अग्नि-परीक्षा होने वाली हैं.जीत से नीचे कुछ भी परिणाम भारतीयों के लिये अपने को साबित करने के लिये नाकाफी होगा.क्योंकि जीतने वाली ही टीम नियम तय करती है.सिडनी में भारत की हार के लिये सिर्फ बकनर और बेंसन को ही जिम्मेदार ठहराना ठीक नही होगा. दूसरी पारी में भारतीय बल्लेबाजों के लिये 'तू चल मैं आया' वाली स्थिति हो गयी थी. मैच को आसानी से ड्रॉ कराया जा सकता था,लेकिन अब २-० की बढत के साथ ऑस्ट्रेलिया को मनोवैज्ञानिक बढत मिल गयी हुई हैं,इसलिए भारतीय टीम की राह अब भी आसान नही हैं.

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