गुरुवार, 24 जनवरी 2008

गोविन्दा का थप्पड

अशोक चक्रधरजी ने गोविंदा के थप्पड पर एक कुंडली लिखी और जिस दिन लिखी उसी दिन दो कार्यक्रमों में उसे सुनाया. कुंडली मतलब जन्मकुंडली नहीं बल्कि जिस शब्द से कविता शुरू की जाती है,उसी शब्द पर आकर खत्म हो जाती हैं. इस छोटी कविता का अपना भाव हैं. यह कुछ इस प्रकार से थी -
कुर्सी दर्शक से हिली, थप्पड़ मारा एक,टीवी ने तकनीक से, थप्पड़ किए अनेक।थप्पड़ किए अनेक, तैश में थे गोविन्दा,राजनीति में खेल चल पड़ा निन्दा-निन्दा।चक्र सुदर्शन, अगर रोकनी मातमपुर्सी,क्षमा मांग ले, वरना हिल जाएगी कुर्सी।
इस कविता के माध्यम से मीडीया पर भी निशाना साधा. खैर बात गोविन्दा की हो रही है, आखिर क्यों एक आम जनता को थप्पड मारा गोविन्दा ने? यह वही आम जनता हैं जिसके सामने चुनाव के वक्त हाथ जोडकर वोट देने की बात करते हैं. यह वही जनता हैं जो उनकी फिल्मों को सफल करवाती हैं तो यह कहते हुये नही अघाते है कि मुझे दर्शकों का ढेर सारा प्यार मिला. थप्पड मारने के दो दिन बाद जब थप्पड खाने वाला मीडिया के सामने आया तो गोविन्दा ने भी अपने बयान को सही साबित करने के लिये दो जूनियर आर्टिस्ट को समने खडा कर दिया.इससे तो एक बात स्पष्ट होती है कि अपनी गलती पर पर्दा करने के लिये पर्दे से ढँकी दो लड्कियों की मदद लेनी पडी.मीडिया द्वारा यह पूछने पर कि आप उनसे माफी माँगेगे तो जवाब था मैं एक थप्पड और मारता हूँ. जब बात इस हद तक बढ चुकी है तो गोविन्दा कैसे माफी माँग ले.
एक बार फिर से कमबैक करने वाले गोविन्दा का अगर यही हाल रहा तो फिल्मों में तो किसी तरह पारी सँभल जायेगी लेकिन राजनीति में ऐसा नही होता हैं.जब यही आम जनता वोट रूपी ताकत का एह्सास करवाएगी तब जाकर पता चलेगा अगर माफी माँग लेते तो ज्यादा अच्छा होता.वैसे भी उनके लोकसभा क्षेत्र में ऐसे होर्डिंग लगे है कि हमारे क्षेत के सांसद गोविन्दा आहूजा लापता हैं उनका पता बताने वाले को इनाम दिया जायेगा. संसद में भी उनकी उपस्थिति काफी कम हैं ऐसी स्थिति में क्या वो अपने फिल्मी कैरियर और राजनीतिक कैरियर से न्याय कर पा रहे हैं? नहीं. दर्शक अभी भी गोविन्दा को एक एक्टर के रूप में ही जानता हैं,अगर वहाँ भी अपनी इमेज में बट्टा लग्वाते रहे तो किसी भी कुर्सी के लायक वो नही रह जायेंगे.

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