मंगलवार, 29 जनवरी 2008

मासूमों की जिंदगी

मुंबई में स्कूल बस में एल.पी.जी. सिलेंडर के फटने के कारण चार स्कूली बच्चों को अपने जान से हाथ धोना पडा.मेरठ में मिड-डे मील बनाते वक्त एक शिक्षा मित्र के साथ चार बच्चें आग से झुलसे.पाकिस्तान में आतंकियों के द्वारा दो सौ स्कूली बच्चों को अपनी बात मनवाने के लिये बंधक बनाना फिर छोडना .इन सभी खबरों में स्कूली बच्चे ही शिकार बने हैं.स्कूली बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की बनती है,लेकिन इन सब मामलों में देखा गया हैं कि कहीं ना कहीं लापरवाही बरती गयी ,जिसकी कीमत या तो बच्चों को जान देकर चुकानी पडी या ये घटनायें मासूमों के मन-मस्तिष्क में जिंदगी भर का घाव दे गयी.
बच्चों को स्कूल ले जाने के लिये जिन वाहनों का प्रयोग किया जाता हैं वे स्कूलों के निजी वाहन होते है या ठेके पर स्कूल द्वारा लिये जाते हैं. स्कूलों का अपना वाहन होने के कारण दुर्घटना की कम संभावना रहती हैं.फिर भी इन वाहनों की समय समय पर जाँच होती रहनी चाहिये.घर से निकलने के बाद जितनी देर बच्चा स्कूल के लिये बाहर रहे तब तक स्कूल की जिम्मेदारी होती है,लेकिन आजकल स्कूल में ही बच्चों के द्वारा अपने सहपाठियों को गोली मारने की घटनायें अपने देश में भी घट रही हैं.यह एक चिंता जनक विषय हैं.स्कूल प्रबंधन भी ऐसी घटनाओं के समय मामले की लीपापोती में जुट जाता हैं.
सरकारी योजनायें भी बच्चों के स्कूली जीवन में नयी नयी तरह की समस्या लाने का काम कर रही हैं. मिड-डे मील योजना के तहत मेरठ में हुयी दुर्घटना से बच्चों के झुलसने की घटना भी कम ह्रृदयविदारक नहीं हैं.बच्चे स्कूल पढने के लिये जाते हैं ना कि भोजन बनाने के लिये. इससे पहले भी इसी मिड-डे मील को किसी निम्न जाति की महिला द्वारा बनाये जाने पर बच्चों द्वारा खाने से इंकार करने पर कहीं ना कहीं इन बच्चों में जाति का जहर घोला जा रहा हैं.
पाकिस्तान में पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत की एक इलाके में पूरे स्कूली बच्चों को बंधक बनाकर छोडने की घटना भी इस ओर इशारा करती हैं कि स्कूली बच्चों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता हैं.वैसे भी बच्चों की अपहरण की घटना को ज्यादातर स्कूल से आते या जाते वक्त ही अंजाम दिया जाता हैं.ऐसे में स्कूल प्रबंधन ज्यादातर अपना पल्ला झाडने का ही काम करती हैं,जबकि ऐसा नही होना चाहिये.महानगरों में वैसे भी माता-पिता दोनों काम पर जाते हैं जिस कारण भी बच्चों को ज्यादा एटेंशन नहीं दे पाते हैं,जिस कारण भी तरह तरह की घटनाएँ घटती रहती हैं.
स्कूल जाने की उम्र में ही बच्चों को उपरोक्त किसी घटना से दो-चार होना पडे,तो यह उनके मानसिक विकास के लिये ठीक नही हैं.इसलिये हमें चाहिये कि आज के बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा मुहैया करवाया जायें,स्कूल प्रबंधन भी समय समय पर ऐसे कदम उठायें जिससे कि बच्चों की सुरक्षा में कहीं चूक ना हो ताकि वे भी हँसते खेलते हुये अपने स्कूली जीवन को जीयें.साथ ही ऐसे सामाजिक और नैतिक मूल्यों का भी पाठ पढायें कि आगे चलकर वे भी एक आदर्श नागरिक बन सके.

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