शुक्रवार, 11 जनवरी 2008

टाटा का 'कार'नामा

बात सन १९८७ की है,जब मैं अपनी नानी के यहाँ जा रहा था.चाचा ने मारूति की ओमनी गाडी नयी नयी ली थी.उसी से सपरिवार हम जा रहे थे.बातों ही बातों में मैंने गाडी की कीमत का अनुमान दस हजार रूपये लगाया,तो यह उत्तर आया कि अगर यह इतनी सस्ती होती तो सडक पर चलने की जगह नहीं होती.उस समय गाडी की कीमत एक लाख रूपये थी.जो कि मेरे कल्पना से बाहर थी.
आज फिर हम उसी बीस साल पहले वाली स्थिति में हैं,एक लाख की गाडी फिर से सडक पर आने वाली हैं,लेकिन एक लाख रूपया आज दूसरे अंदाज में चौंकाता हैं.रतन टाटा ने एक परिवार को स्कूटर पर जाता देखकर इस कार की कल्पना की और चार साल बाद अपने वादे को निभाते हुये एक लाख की कीमत में ही कार की लाँचिंग की.३३ हॉर्सपावर और ६२४ सीसी इंजन वाली यह "नैनो" कार भारत की अब तक सबसे सस्ती कार मारूति ८०० के मुकाबले भीतर से २१ फीसदी बडी होगी वही बाहर से ८ फीसदी छोटी होगी. एक लीटर में बीस किलोमीटर का दावा करने वाली यह गाडी फुल फ्रंटल टेस्ट से भी गुजर चुकी हैं,जो कि अभी भारत की सडक पर चलने वाली कई गाडी इस टेस्ट से नही गुजरी हैं.
कार से प्रदूषण कम हो इसका भी ध्यान रखा गया हैं.यह गाडी भारत-थ्री और यूरो-फॉर मानकों पर खडी उतरती हैं,इसका मतलब भविष्य को ध्यान में रख कर बनाया गया हैं क्योंकि भारत में अभी तक यूरो-फॉर मानक की गाडियाँ अभी तक बाजार में नही आयी हैं.इसी पर लाँच करते वक्त रतन टाटा ने पचौरी साहब और सुनीता नारायण के चैन से सोने की बात की. लेकिन एक साल में ढाई लाख यूनिट सडकों पर उतारने का लक्ष्य प्रदूषण के साथ साथ सडक पर वाहनों को रेंगने वाली स्थिति में ला देगा.
भारत की राजधानी दिल्ली में इस वक्त जहाँ प्रगति मैदान में नैनो गाडी की लाँचिंग हुयी वही उसके बाहर सडकों पर दो-दो घंटे का जाम लोगों को झेलना पड रहा हैं. सात करोड दुपहिया वाहनों और एक करोड निजी कार वाले देश में अभी ही सडकों पर जाम की स्थिति आम हैं.इसका एकमात्र कारण सरकार द्वारा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर ध्यान नही दिया जाना हैं.ऐसी स्थिति में लोग निजी वाहन की व्यवस्था ना करे तो और क्या करे.अब नैनो के सितंबर माह से आने के बाद दिल्ली में तो स्थिति बिगडने वाली ही हैं.अभी भी दिल्ली में अकेले अन्य तीन महानगरों से भी ज्यादा वाहन हैं.
नैनो की लाँचिंग भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग के लिये एक मील का पत्थर साबित होगी.१९८० के शुरूआती दशक में जहाँ भारत में कार उत्पादन की संभावनायें तलाशी जा रही थी वहीं आज जैगुआर और लैंडरोवर जैसी गाडी भारतीय कंपनी के ब्रांड के रूप में निकलेगी.भारतीय उद्यमिता की यह नायाब मिसाल है कि आज हम विश्व को सबसे सस्ती गाडी देने में सफल हुये हैं.चीन से उत्पादित होने वाली सबसे सस्ती गाडी से आधे मूल्य पर यह गाडी अब लोगों को मिल सकेगी.
तीस हजार करोड रूपये वाली कंपनी टाटा मोटर्स ने भले ही इस गाडी की मनक कीमत अभी एक लाख रूपये रखे हैं,लेकिन कितने दिनों तक इस कीमत पर कायम रहेगी,इस पर बोलने को कोई तैयार नही हैं, साथ ही इस गाडी पर कंपनी को कितना मुनाफा होगा,यह भी तय नहीं हैं.लेकिन मध्यम वर्ग को इन सबसे क्या लेना देना,अब तो कुछ ही दिनों में उनका भी कार रखने का सपना पूरा होने वाला हैं,क्यों न पेट्रोल और डीजल की बढती कीमतों के बीच यह उनके घर के आगे एक नुमाइश की वस्तु ही बनकर खडी हो.

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