बुधवार, 7 नवंबर 2007

पटाखा बजा

दीवाली के दौरान पटाखे फोडना बच्चो को काफी अच्छा लगता है लेकिन ये स्वास्थ्य के लिये कितना हानिकारक है इसकी जानकारी उन्हे नही होती . वायु प्रदुषण ऍवम ध्वनि प्रदूषण मे इससे काफी इजाफा होता है. पटाखे बनाने वाले निर्माता सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गये मानदन्डो का पालन नही करते. १२० डेसीबल की तीव्रता से ध्वनि करने वाले पटाखे बनाने की छूट सुप्रीम कोर्ट ने दे रखी है, लेकिन डेसीबल मीटर पर जाँच करने पर पाया गया कि जितने भी पटाखे बनाये जा रहे है उनकी तीव्रता १४० डेसीबल से ज़्यादा है, जो कि कोर्ट के आदेश का उल्लन्घन है.
मानव कान के लिए ८० डेसिबल तक की आवाज़ सही मानी जाती है, अतः ६० डेसिबल तक के आवाज के पटाखे बनाने के लिये अनुमति दी जानी चाहिये.

दीवाली के दौरान वायु प्रदूषण एक बडी समस्या के रूप मे उभर कर आती है.पटाखे फोडने के बाद उसमे से निकलने वाले सूक्ष्म कण सल्फर , निकलने वाली हानिकारक गैसे जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर मोनो ऑक्साईड स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर डालती है. सल्फर जैसे सूक्ष्म कण साँस के द्वारा फेफडो मे चले जाते है जिससे कि अस्थमा , ब्रोन्काइटिस जैसी खतरनाक बीमारी भी होने की सम्भावना रहती है.

भारत के महानगरो मे प्रदूषण की समस्या पहले से ही व्यापत है. दीवाली के दौरान ये बढकर काफी ज्यादा हो जाती है . मौसम मे बदलाव भी इसी समय होता है जिस कारण से धूए और कुहासे का मेल और भी खतरनाक होता है.

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