बुधवार, 14 नवंबर 2007

राष्ट्रीय पशु की जान खतरे में

वन्य-जीवों का संरक्षण पर्यावरण के लिये निहायत ही जरूरी हैं, इसके लिये सरकार जहाँ तरह तरह के उपाय करती है वहीं हाल में महाराष्ट्र के वन्य विभाग के अधिकारी का तडोबा अभ्यारण्य के आस पास बाघों को देखते ही गोली मार देने के आदेश ने इस विलुप्त होते हुए जीव को फिर से संकट में डालने का काम किया हैं.


महाराष्ट्र में पडने वाले एक इलाके तडोबा मे बाघों की प्रजाति पायी जाती है. तडोबा से लेकर ब्रह्मपुरी तक के बीच वाले इलाके में मानव वास नहीं करते हैं. यह पूरा इलाका बाघों के अभ्यारण्य के रूप में जाना जाता हैं. यहाँ पर सरकार की बाँध बनाने की योजना है.इस कारण भी यहाँ पर जीवों के प्राकृतिक आवास खोने का खतरा हैं.

१९७० के दशक में बाघो की विलुप्त होती हुई प्रजाति के कारण सरकार ने 'प्रोजेक्ट टाइगर' चलाया था.१९७३ में जब बाघो की गिनती की गयी तो पूरे देश में बाघो की संख्या १८२७ थी.लेकिन २००३ के करीब यह संख्या घट कर १५०० के करीब हो गयी. मध्य भारत में बाघों की संख्या में ६०% की गिरावट देखी गयी. बाघो के गैर कानूनी शिकार के कारण इनकी संख्या में तेजी से गिरावट देखने को मिली.अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में पारिस्थितिकी-तंत्र गडबडा जायेगा.

भारत में अभी बाघो की पाँच प्रजाति पायी जाती हैं - रायल बंगाल टाइगर, इंडो-चाइनीज,साइबेरियन, सुमात्रा और साउथ चाइना . दो जातियाँ और पायी जाती थी जिसे आधिकारिक तौर पर विलुप्त करार दे दिया गया हैं.य हैं- बाली-कैस्पियन और जावा. बाघो के देख रेख के लिए अगर कोई नीति नही बनायी गयी तो वह दिन दूर नही जब हमें इन बची हुई पाँच प्रजातियों में से कुछ और प्रजाति देखने को ना मिले.


पर्यावरणविद इस दिशा में सरकार द्वारा सार्थक कदम उठाने की माँग कर रहे हैं. रायल बंगाल टाइगर की घटती हुई संख्या पर सरकार ने एक बार ध्यान दिया था लेकिन उसके बाद से कोई सार्थक प्रयास नही किये गये. वन्य विभाग के अधिकारी उनकी सुरक्षा के लिये तैनात किये जाते है न कि वन्य-जीवों को मारने के लिये.निश्चय ही यह चिंता का विषय है.

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