गुरुवार, 22 नवंबर 2007

हवा में उडते बिमान

पश्चिम बंगाल में तेजी से बदलते हुए घटनाक्रम के बीच में माकपा नेता विमान बोस के बयान काफी उन्मुक्त रूप से आ रहे हैं.जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली बार अपनी चुप्पी तोडते हुए कहा था कि यह घटना काफी दुखद है और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी बनती हैं कि वहाँ सभी को बिना किसी मतभेद के राहत पहुँचाये. प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया पर टिप्पणी करते हुए माकपा नेता बिमान बोस ने कहा कि वे प्रधानमंत्री हैं और प्रधानमंत्री का जो काम है वो करे.
२१ नवंबर को कोलकता में हुई हिंसा के दौरान नंदीग्राम के मुद्दे के अलावा तस्लीमा नसरीन की वीजा अवधि बढाये जाने का मुद्दा भी सामने आया .इस पर भी उनका बयान आया कि तस्लीमा को भारत छोडकर चले जाना चाहिये.
इससे पहले भी राज्य में २००४ के विधानसभा चुनाव के दौरान गडबडी होने की स्थिति में चुनाव रद्द करने की बात कही थी.२००५ में न्यायपालिका के खिलाफ टिप्पणी करने के कारण तीन दिन की जेल और दस हजार रूपये के जुर्माने की भी सजा भी सुनायी गयी थी.
हाल में दिये हुए बयानों की बात करे तो अपने को क्या समझ लिया हैं कि प्रधानमंत्री को यह नसीहत दें कि उन्हें सिर्फ अपने काम से मतलब होना चाहिये.क्या पश्चिम बंगाल देश के बाहर पडता है,जिसके वो प्रधानमंत्री नही हैं.अपने को बंगाल राज्य का सर्वेसर्वा समझने वाली पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुंह से यह बयान शोभाजनक नहीं लगता हैं.राज्य के किसी हिस्से में अगर अव्यवस्था हैं तो राज्य सरकार का यह फर्ज बनता है कि वहाँ स्थिति को नियंत्रण में लाए.न कि शासन करने वाली पार्टी के एक नेता इस तरह की अनर्गल बाते करे.
तस्लीमा नसरीन के मुद्दे पर तो अगले दिन अपने बयान को वापस लिया और कहा कि वीजा को निरस्त करने या बढाने का अधिकार केंद्र सरकार का हैं.इस बयान से पश्चिम बंगाल की सरकार को एक बार फिर स्पष्टीकरण देना पडा.राज्य में इस समय माकपा के विरोध में विपक्षीयों के अलावा सहयोगी दलों ने भी मोर्चा खोल रखा हैं.
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य होने के साथ साथ वरिष्ठ नेता होने के कारण उनका यह दायित्व बनता है क़ि जो भी बयान दे सोच समझ कर दे.पार्टी को शर्मसार ना होना पडे और एक लोकतंत्रीय मर्यादा के भीतर रहकर अपने विचार व्यक्त करे अन्यथा इससे पहले भी खामियाजा भुगतना पडा है और आगे भी ऐसा कुछ हो सकता हैं.

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