सोमवार, 12 नवंबर 2007

स्टिंग का डंक

गुजरात दंगे पर दिखाये गये स्टिंग ऑपरेशन "ऑपरेशन कलंक " ने नयी बात कुछ नहीं बतायी हो,लेकिन इस खुलासे ने इसमे एक नया आयाम जोडा है. इसके प्रसारण के समय और तरीके पर प्रश्न उठाया जा रहा है,जो स्वभाविक भी है. मोदी को इससे फायदा मिलेगा,ऐसा सोच उनके विरोधी आशीष खेतान ,तहलका रिपोर्टर , के साहसिक प्रयास से खुश नही दिखायी दिये.मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को इससे आस जगी कि न्याय मिलने मे यह एक मील का पत्थर साबित होगा।

मोदी समर्थक वर्ग ने इसे कांग्रेस व निरपेक्ष शक्तियों का षडयंत्र बताया,साथ ही इसे टेप मे दिखाये गये लोगो की प्रतिक्रिया को बढा-चढाकर बोलने वाला बताया.वहीं मोदी विरोधी वर्ग को यह भय सता रहा है कि इससे हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण एक बार फिर से मोदि के पक्ष मे हो जायेगा ।

मीडिया भी पशोपेश मे है कि कहीं इसका फायदा मोदी सरकार को आने वाले चुनाव मे ना मिल जाये.एक तरफ तो गुजरात के मुसलमानों की स्थिति पर मीडिया स्पेशल कार्यक्रम,डाक्युमेंट्री बना रहा है,ताकि सरकार उनकी सुध ले सके,उनके स्थिति मे सुधार आये ,उन्हें इंसाफ मिल सके. दूसरी तरफ यह सच्चाई लाने का प्रयास किया जा रहा है,जो कि फिर से गुजरात मे मोदी की सरकार लाने मे सहायक साबित हो सकता है।

गुजरात का मुस्लिम समुदाय अपने घावों को भरने की कोशिश कर रह हैं,अपने पैरों पर खडा हो कर एक सामान्य जीवन जीने की स्थिति में आ चुका हैं,वैसे में ये प्रयास उनके घावो को कुरेदने जैसा है .
स्टिंग की विश्वसनीयता इधर घटी है ऐसी स्थिति में यह स्टिंग सच्चाई को सामने लाने के उद्देश्य से ही की गयी, या इसके पीछे कोई निहित स्वार्थ था-ऐसे प्रश्न दर्शकों के दिमाग में उठना लाजिमी है.रिपोर्टर के द्वारा स्वयं को हिन्दू भावनाओ का हिमायती बताकर दंगो को अंजाम देने वालो के मुख से सच्चाई निकलवाने पर इस ऑपरेशन की नैतिकता पर सवाल उठाये जा सकते है लेकिन ऐसा प्रयास करने वाले कितने पत्रकार होंगे।

स्टिंग के प्रसारण को ग्राफिक्स के जरिये प्रभावी बनने का प्रयास तो किया गया , लेकिन इसके त्वरित और दूरगामी प्रयास पर ना चर्चा हुई ,ना ही इसे समझाने का प्रयास ही हुआ.चैनल ने टी.आर.पी. बटोरी और क़ाम खत्म.

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