मंगलवार, 20 नवंबर 2007

किसानों की आत्महत्या ऑकडों में

किसानों की आत्महत्या के सिलसिले में नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो की रिपोर्ट पर हम नज़र डाले तो हम पाते हैं कि १९९७ से लेकर २००५ के बीच डेढ लाख किसानों ने आत्महत्या की,जो कि अपन आप में चौंकाने वाला तथ्य है.१९९१ की जनगणना से २००१ की जनगणना में किसानों की संख्या में गिरावट दर्ज़ की गयी है इसका मुख्य कारण बडे पैमाने पर किसानों द्वारा खेती छोड दूसरा पेशा अपनाना बताया जा रहा हैं.
१९९७ से लेकर २००५ के बीच सामान्य आत्महत्या की दर जहाँ १०.७% रही हैं वही किसानों की आत्महत्या की दर १२.६% हैं,जो कि सामान्य कारणों से ज्यादा हैं. इसी दौरान किसानों की आत्महत्या में २७ फीसदी की बढोत्तरी हुई है,वही सामान्य आत्महत्या में १८% की बढोत्तरी दर्ज की गयी है.रिपोर्ट में २००१ वर्ष को टर्निंग प्वाइंट माना हैं,जहाँ से किसानों की आत्मह्त्या में हर साल बढोत्तरी ही दर्ज की जा रही हैं.
भारत के चार राज्यों - आँध्र प्रदेश,कर्नाटक,महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पूरे देश में होने वाली आत्महत्या का दो-तिहाई आत्महत्याऍ होती हैं. मध्य प्रदेश में हो रही आत्महत्याओं में २००६-०७ के दौरान किसानों की आत्महत्या में ११% की बढोत्तरी हुई है. यह राज्य अभी हाल में हो रही आत्महत्याओं के कारण इन चार राज्यों की सूची में शामिल हुआ हैं.
किसानों की आत्महत्या पर चेन्नै के प्रोफेसर के. नागराज की रिपोर्ट के अनुसार जिन राज्यों में किसानों ने जहाँ पारंपरिक फसल उगाने की बजाय जहाँ नकदी फसल उगाना शुरू किया ,वही आत्महत्याओं की संख्या में बढोत्तरी देखी गयी. एक हद तक यह बात सही हो सकती है,लेकिन नकदी फसल उगाने के पीछे ज्यादा धन ही कमाना होता हैं.नकदी फसल के उत्पादन में काफी खर्च होने के कारण किसान बैंक और बाजार से कर्ज तो ले लेते है लेकिन चुकाने की स्थिति में ना होने के कारण आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं.उनके पास खाने के लिये अनाज भी नही होता है.
नकदी फसल के उत्पादन के बाद भी फसल की सही कीमत नहीं मिल पाती हैं.अगर बी.टी. कॉटन की बात करे तो अमेरिका इस पर जितनी सब्सिडी देता है,उतनी कीमत पर अपने किसान अगर बेचे तो उनका उत्पादन-मूल्य भी नही निकल पाता हैं. ऐसे प्रतिस्पर्धी बाजार में ऐसी समस्या आती ही रह्ती हैं.
किसानों के द्वारा ज्यादा से ज्यादा कमाने की चाह उन्हें कही का नही छोडती हैं.नकदी फसल का उत्पादन मूल्य बढता ही जा रहा हैं जिस कारण इससे होने वाले फायदे में भी कमी आती जा रही हैं.फिर कभी कभी फसल भी खराब होने की स्थिति में उनके सामने कर्ज चुकाने की समस्या आ जाती हैं,ऐसे में उन्हें आत्महत्या करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नज़र नही आता हैं.सरकार भी समय समय पर कर्ज देती है,लेकिन एक बार से ज्यादा बार लेने के बाद भी अगर हर बार डीफॉल्टर होने की स्थिति में सरकार से भी मदद मिलना बंद हो जाता हैं.
देश में हर ३२ मिनट पर एक किसान आत्महत्या करता हैं,ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा सिर्फ राहत देने से काम नहीं चलेगा. सरकार को ऐसी नीति लानी होगी जिससे कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ कहे जाने वाले कृषि क्षेत्र से किसानों का पलायन कम हो और ज्यादा से ज्यादा कृषि-उत्पाद हो ताकि हमें दूसरे देश पर कम से कम अनाजों के लिये निर्भर ना होना पडे.

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