मंगलवार, 13 नवंबर 2007

सावरिया को किया शांत

ओम शांति ओम और सावरिया फिल्में दीवाली पर रिलीज़ हुई. दोनों फिल्मों को रिलीज करने से पहल निर्माताओं ने फिल्मों को प्रोमोट करने के लिये कोई कोर कसर नही छोडी .फिल्म रिलीज होने के बाद दर्शकों की प्रतिक्रिया से स्पष्ट हुआ कि जहाँ ओम शान्ति ओम दीवाली का बडा पटाखा साबित हुई वहीं सावरिया फुलझडी साबित हुई.
फरहा खान ने दर्शकों की पसंद का ध्यान रखते हुए अपने फिल्म में सभी तरह के मसालों का प्रयोग किया वही संजय लीला भंसाली ने पूर्व की फिल्मो की तरह कलात्मकता पर ज्यादा ध्यान दिया है. फरहा ने पुरानी हिन्दी फिल्मों के प्लाट को लेकर काफी अच्छे तरीके से मिलाकर पेश किया है. इसमे फरहा ने अपनी कलात्मकता का परिचय दिया. जबकि संजय ने दर्शकों का ध्यान नही रखते हुए अपनी कला को उन पर थोपने का प्रयास किया है.
सावरिया में दर्शकों को फिल्म काफी धीमी लगी. पूरे फिल्म में कहीं भी दिन का सीन नहीं है.नय़े सितारों के साथ फिल्म बनाने का रिस्क भी लिया गया.कलात्मक सेट के आगे अभिनय का कमजोर लगना, साथ ही यह फिल्म ऐसी फिल्म के सामने रिलीज हुई जिसके मुख्य सितारे शाहरूख थे. सावरिया को दर्शकों की प्रतिक्रिया का भी खामियाजा भुगतना पडा,संजय भी मीडीया पर इसलिये भडके कि दर्शकों के देखने से पहले ही अपना फैसला सुना दिया. ये वही संजय है जो कुछ दिन पहले मीडीया के ही मदद से ही फिल्म के प्रचार-प्रसार में जुटे थे.
फरहा ने पुरानी फिल्म 'कर्ज' से प्रेरित होकर और साथ ही साथ पुराने दौर के मसाले को एक सुत्र में पिरो कर 'ओम शांति ओम' दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया . सत्तर के दशक को पर्दे पर जीवंत करने का प्रयास किया,दर्शकों को यह प्रयास काफी भाया ,इसलिये फिल्म चल निकली. वैसे इस फिल्म ने प्रयोगधर्मिता के इस युग में कुछ नया देने का प्रयास नहीं किया. नयी तारिका दीपिका पदुकोणे का अभिनय लोगों ने सराहा और इसे आने वाले समय की उभरती नायिकाओ में काफी आगे जाने वाली अभिनेत्री माना.
फिल्मों के व्यवसाय करने की जहाँ तक बात है, दोनों फिल्में सफल तो होंगी ही,लेकिन कौन सी फिल्म दर्शकों के साथ साथ आलोचकों व समीक्षकों को प्रभावित करने में सफल होगी ,यह आने वाला समय ही बतायेगा.

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