मंगलवार, 27 नवंबर 2007

कोच तभी होगा जब वह विदेशी हो.

भारतीय क्रिकेट टीम अभी काफी अच्छे दौर से गुजर रही है. इंग्लैंड में टेस्ट श्रृंखला जीती,२०-२० का वर्ल्ड कप जीती,पाकिस्तान के खिलाफ एक-दिवसीय श्रृंखला जीती और वर्त्तमान में चल रहे टेस्ट श्रृंखला में १-० से आगे हैं.ऐसा माना जा रहा है कि टीम जो प्रदर्शन कर रही है वो बिना एक कोच के कर रही है.रॉबिन सिंह,वेंकटेश प्रसाद और लालचंद राजपूत क्या टीम की शोभा बढाने के लिये साथ में रहते हैं क्या? ये कोच की जिम्मेदारी बखूबी नही निभा रहे है क्या,जो एकाएक ऐसे विदेशी कोच का नाम सामने आ गया जिसने शुरूआत में ही कह दिया कि मैं बीसीसीआई पर यह एहसान कर रहा हूँ कोच बन कर.जी हाँ,मैं बात कर रहा हूँ दक्षिण अफ्रीका के सलामी बल्लेबाज गैरी कर्स्टन की,जो कि हाल में ही भारतीय टीम के कोच नियुक्त हुये हैं.
सबसे पहली बात कि भारतीय टीम को अचानक ही कोच की जरूरत क्यों आन पडी.इसका सीधा-सा जबाब हैं भारतीय टीम को अगले महीने ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जाना हैं जहाँ एक कोच की सख्त जरूरत होगी वह भी विदेशी.आनन-फानन में एक ऐसे पूर्व क्रिकेट खिलाडी को चुन लिया जिसे कोचिंग का नाम मात्र का अनुभव हैं.खिलाडी के तौर पर गैरी का भले ही अच्छा रिकॉर्ड रहा हो लेकिन किसी को कोच चुनने का यह आधार नही हो सकता हैं. और तो और आपके टीम में चार-पाँच तो ऐसे खिलाडी है जो उसके साथ खेले है और कुछ तो ऐसे है जो उनके खेलने से पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में खेल रहे हैं.
ग्रेग चैपल के विवादास्पद कोचिंग दौर के बाद आठ महीने तक कोई कोच (?) नहीं होने के बाद एक विदेशी को कोच नियुक्त किये जाने पर लालचंद राजपूत का गुस्सा होना यह दिखाता हैं कि किस तरह बोर्ड अभी भी विदेशी कोच होने की मानसिकता से घिरा हैं.भारत में अभी के दौर में चंद्रकांत पंडित,पारस म्हाम्ब्रे,लालचंद राजपूत,संदीप पाटिल जैसे कोच उपलब्ध हैं लेकिन बोर्ड को इनकी योग्यता पर भरोसा नहीं हैं.तो क्या भारत में कोच कभी भी अपने राष्ट्रीय टीम की कोचिंग नही कर पायेंगे.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को यह आशंका है कि अगर डाउनअंडर जाने वाली टीम बिना विदेशी कोच के जाती है तो उस पर कोच नहीं नियुक्त किये जाने पर अँगुली उठने लगेगी.टीम ने अगर बुरा प्रदर्शन किया तो इसका ठीकरा आसानी से कोच के सिर पर फोडा जा सकता हैं.इस तरह कोच को आनन-फानन में नियुक्त कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने में ही भलाई समझी बोर्ड ने.
भारतीय टीम को निश्चित तौर पर एक कोच की जरूरत हैं लेकिन इस तरह किसी का फेवर लेकर कोच नियुक्त करना कहाँ की समझदारी हैं.नये खिलाडियों को कोच करने की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता हैं.तीस से उपर के खिलाडी भले ही कोचिंग की जरूरत नही पडे लेकिन नये खिलाडी जितनी जल्दी से भारतीय टीम में दिखायी देते है उतने जल्दी ही गायब हो जाते हैं.नये आने वाले खिलाडीयों में प्रतिभा तो काफी हैं लेकिन उसे निखारने की जरूरत हैं ताकि वह भी आया राम गया राम वाली श्रेणी में शामिल ना हो जायें.इस समय एक दक्ष कोच की जरूरत थी ना कि कामचलाऊ कोच की.

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