गुरुवार, 8 नवंबर 2007

वो बात नही रही

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही मौजूदा क्रिकेट सीरीज मे अब पहले वाली बात नही रही . २००४ मे ही हुई सीरीज की बात करे तो उस समय दर्शको मे काफी जोश था . भारत का पाकिस्तान दौरा काफी सफल रहा था. तब से हो रहे द्विपक्षीय सीरीज अब दर्शको मे वह उत्साह् पैदा नही कर पा रही है. इसका मुख्य कारण दोनो देशो के बीच लगातार मैच खेले जा रहे है. हाल के मैचो मे भारत को लगातार मिली रही सफलता ने भी इसका आकर्षण खत्म कर दिया है. १९८३ विश्व कप के बाद भारत पाकिस्तान के खिलाफ लगातार सफल होता रहा लेकिन शारजाह मे चेतन शर्मा की अन्तिम गेन्द पर जावेद मियादाद के छक्के ने तो भारत के जीत पर एक तरह से ग्रहण ही लगा दिया. पाकिस्तान जीतते चला गया. नब्बे के दशक मे तटस्थ स्थानो पर मैच होने लगे . शारजाह मे तो भारत को कम ही जीत नसीब होती. टोरन्टो मे भी दोनो टीमो को सफलता तो मिली, लेकिन अपने देश मे ना खेलने के कारण दोनो देशो को वो समर्थन नही मिल पाता जो मिलना चाहिये था. लेकिन इस दौरान हुए विश्व कप मे भारत ने पाकिस्तान को हमेशा हराया. कारगिल मे हो रहे सन्घर्ष के बीच १९९९ के विश्व कप के दौरान तो भारत ने देशवासियो को जीत का नायाब तोहफा दिया. २००३ मे भी पाकिस्तान पर जीत का जश्न हमने मनाया तो सही , भले ही हम फाइनल मे हार गये.
२००४ से शुरू हुआ दोनो देशो के बीच एक- दूसरे के यहाँ सीरीज खेलने का सिलसिला . शुरूआती वर्षो मे तो इसे काफी सफलता मिली , दोनो देशो के बीच दर्शको का आना जाना हुआ ,रिश्तो मे सुधार आया . राजनेताओ से मिलना व उनकी शुभकामना लेना ने इसे 'क्रिकेट डिप्लोमेसी ' का नाम दिया.
२००७ आते आते दोनो टीमो का मुकाबला आम बात हो गयी. विश्व कप मे तो मुकाबला नही हो सका ,लेकिन क्रिकेट के नये अवतार ट्वेन्टी-२० के विश्व कप मे भारत ने अपने चिर प्रतिद्वन्दी को दो बार हराया. खिताबी जीत भी पाकिस्तान पर ही हासिल हुई थी, जीत का मजा दुगुना हो गया.
मौजुदा सीरीज मे भारत का पलडा भारी होने के कारण ही सीरीज इतना उत्साह नही देखने को मिल रहा है.

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