बुधवार, 21 नवंबर 2007

नाटक हैं कि खत्म ही नहीं होता.

कर्नाटक में सात दिन पुरानी बी.एस.येदुरप्पा नेतृत्व वाली भा.ज.पा. सरकार सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही गिर गयी. पिछले दो महीने से चले आ रहे नाटक का पटाक्षेप होने के बजाय यह और भी खींचता चला जा रहा हैं. राष्ट्रपति शासन हटाने के लिये भाजपा और जद(एस) दोनों पार्टी एकदम अड गयी थी,लेकिन सरकार जहाँ बनाने की बात आयी,दोनों के आपसी मतभेद एक बार फिर उभर के सामने आ गये.

भारतीय जनता पार्टी का दक्षिण राज्य में कमल खिलाने का सपना अभी अधूरा ही रह गया.पार्टी ने इस बार भी सत्ता-हस्तांतरण के मामले में एक बार फिर धोखा खाया.अपनी पिछली भूलों से सबक नही लेने का खामियाजा इस बार भी भुगतना पडा.१९९७ में मायावती ने उत्तर प्रदेश में भी भाजपा को सता में नही आने दिया. हर बार पार्टी अपने गठबंधन सहयोगी को पहले सरकार बनाने का मौका देती हैं ,जिस कारण से सरकार बनाने की जब इन की बारी आती हैं,तो धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर दूसरी पार्टी किनारा कर लेती हैं.

जनता दल (सेक्युलर) के प्रमुख नेता एच. डी. देवेगौडा ने भाजपा की नयी सरकार के सामने १२ सूत्री माँगों पर पहले हस्ताक्षर करने की स्थिति में ही समर्थन देने की बात कही,जिसे की भाजपा ने सिरे से नकार दिया.इससे पहले भी अक्तूबर महीने में जद(एस) ने भाजपा को सरकार बनाने नही दिया था. इस तरह दो-दो बार धोखा दिया गया.अब काँग्रेस के समर्थन पर सरकार बनाने का सोच रही हैं.

समर्थन वापस लेने के पीछे कारणों में जद(एस) के द्वारा मुख्य मंत्रालय मांगा जाना बताया जा रहा हैं.साथ ही देवेगौडा परिवार में आपसी कलह भी इसका कारण बताया जा रहा हैं.देवेगौडा के दूसरे बेटे रेवन्ना को उप्-मुख्यमंत्री बनाया जा रहा था जबकि जद(एस) के विधायक एच.डी.कुमारास्वामी को उप-मुख्यमंत्री बनाना चाह रहे थें.

प्रजातंत्र में गठबंधन के इस युग में पार्टियों को भी भिन्न-भिन्न स्थिति से गुजरना पड रहा हैं,ऐसे में नए समीकरणों का सामने आना लोकतंत्र में हमारी आस्था को और गहरा करती हैं,लेकिन हमारे द्वारा चुनकर भेजे गये प्रतिनिधियों और उनकी सत्ता-लोलुपता को भी सामने रखती हैं. राजनीति अब समाज सेवा नही रह गयी हैं,ज्यादा से ज्यादा स्व-सेवा हो गयी हैं.गठबंधन के दौरान उनकी स्वार्थसिद्धी मुखर रूप से जनता के सामने उभर कर आती है,जनता भी ऐसे समय में सहानुभूति के लहर में धोखा खायी पार्टी के साथ हो जाती हैं,जो कि नही होना चाहिये.जनता को वैसी पार्टी को चुनना चाहिये,जो कि राज्य के सर्वांगीण विकास के लिये सोचे,न कि अपने विकास की.

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