मंगलवार, 13 नवंबर 2007

बचपन बिना जीवन : एक 'गैप' यह भी

बाल श्रम पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आने के बाद भी इस दिशा में कोई सुधार आता हुआ नही दिखायी दे रहा है.अखबारों में कभी कभी यह खबर देखने को मिल जाती है कि इस फैक्टरी से इतने बाल मजदूर छुडाये गये,लेकिन एक बडे स्तर पर कोई काम होता हुआ नही दिखायी दे रहा हैं. १४ वर्ष से नीचे के बच्चों को किसी भी तरीके के काम में लगाया जाना कानूनन जुर्म है.
हाल में अंतर्राष्ट्रीय कपडे बनाने वाली कंपनी 'गैप' ने जब भारत में अपने कपडे के निर्माण में बाल श्रम का उपयोग देखा तो उसने कपडे बाज़ार से वापस ले लिये. ऐसी स्थिति मे भारत की निर्माता कंपनी यह दलील देती है कि जब उन्हे कपडे बनवाने होते है तो मोल-जोल कर सस्ते दाम पर सौदा तय करते है,ऐसी स्थिति में यहाँ की कंपनियाँ बाल श्रम का सहारा लेती है.
भारत में बाल श्रम के लिये सबसे बडा कारण गरीबी को माना जाता है.गरीबी की स्थिति में अभिभावक अपने बच्चों को मजदूरी करने पर विवश करते है.उनको पढाने लिखाने का सामर्थ्य इनके पास होता नही है इस स्थिति मे बचपन से ही काम करने के लिये मजबूर किया जाता है. बच्चो की मनोस्थिति भी उसी तरह की बना दी जाती है कि अगर वो कमायेंगें नही तो खायेंगे क्या? उनके लिये भी पढने का कोई महत्त्व नही रहा जाता है.एक ही मकसद रह जाता है पैसा कमाना.
अशिक्षा भी इसमे काफी अहम भूमिका निभाती हैं. गरीब लोग इस आस में ाधिक से अधिक बच्चें पैदा करते है कि वो बडे हो कर ज्यादा से ज्यादा कमा कर देंगे.लेकिन उससे पहले उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति किस तरीके से होगी इसकी चिन्ता नही करते हैं.
यूरोपीय देशों में बाल श्रम के खिलाफ अठारहवीं सदी से ही मुहिम चलायी जा रही है,तब जा कर अभी वर्तमान में स्थिति काफी सुधरी हुई है. भारत में रातोंरात स्थिति सुधर जायेगी - ऐसी आशा करना बेकार है.
गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा भारत में बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में काफी सार्थक प्रयास किये जा रहे है.सरकार को नीति बनाने के अलावा इसको लागू करने की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिये,तभी नीतियों का भी फायदा होगा.

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