बुधवार, 28 नवंबर 2007

तस्लीमा का तिलिस्म

बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तस्लीमा नसरीन इन दिनों एकबार फिर से सुर्खियों में हैं.पिछले सप्ताह नंदीग्राम में हुयी हिंसा के विरोध में जब कोलकत्ता में प्रदर्शन किये जा रहे थे,तभी एक नये मुस्लिम संगठन ने तस्लीमा की वीजा अवधि का मामला इसमें जोर दिया और इसी बीच माकपा नेता बिमान बसु का यह बयान कि अगर तस्लीमा के कारण विधि-व्यवस्था बिगडती है तो उसे देश छोड देना चाहिए.तस्लीमा का कोलकत्ता छोड जयपुर जाना,फिर वहाँ से दिल्ली आना और अब किसी अज्ञात स्थान पर जाना लगातार सुर्खियों में छाया हुआ हैं.
अपने देश को छोड पिछले कई सालों से भिन्न-भिन्न देशों में शरण लेने वाली तस्लीमा भारत को ही अपना घर मानती है.बांग्लादेश मे कट्टरपंथियों के विरोध के कारण उसका देश लौटना अब संभव नहीं हैं. अपने धर्म के खिलाफ लिखने के कारण उन्हें जगह-जगह विरोध का सामना करना पड रहा है.बुद्धिजीवियों के नजर में व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिये ,इसलिये तस्लीमा ने जो भी लिखा उस कारण उसका विरोध नहीं किया जाना चाहिये.लिकिन जो कट्टरपंथी हैं वे इस तर्क को खारिज़ करते है और इसे धर्म पर चोट पहुँचाना मानते हैं.आस्था के इस प्रश्न पर वो किसी को भी बख्शने को तैयार नहीं हैं.
इधर राजनीतिक पार्टियाँ इस मुद्दे पर भी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने से बाज नही आ रही हैं.सबसे पहले माकपा ने जबरन तस्लीमा को जयपुर भेजा ,तब राजस्थान की भाजपा सरकार ने अपने यहाँ से दिल्ली भेज दिया और अपने राजस्थान भवन में ठहराया.मीडिया ने जगह जगह पर लेखिका का पीछा किया.मुद्दा गरमाता देख केंद्र सरकार हरकत में आयी और ऐसे स्थान पर ले गयी जिसकी खबर मीडिया को ना लगे.इसी बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तस्लीमा बहन को अपने यहाँ आने का न्यौता दे दिया.
भाजपा ने इस मुद्दे पर यह जताने की कोशिश की कि वह मुस्लमानों की कितनी हिमायती हैं.केंद्र सरकार भी पीछे कहाँ रहती ,उसने भी शरणार्थी घोषित करने की जल्दबाजी दिखायी.यहाँ तस्लीमा को पनाह देना मुस्ल्मानों को खुश करना हैं या नाखुश करना,यह तो आने वाला समय ही बतायेगा,लेकिन अभी पूरी पार्टियाँ तस्लीमा के तिलिस्म में उलझी हुयी नजर आती हैं.

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