शुक्रवार, 16 नवंबर 2007

क्या आत्महत्या ही करना है उपाय?

किसानों की आत्महत्या के बाद आंध्र प्रदेश से वैसे श्रमिकों की आत्महत्या की खबर आ रही है जो कर्ज लेकर कमाने के लिये खाडी देशों में चले जाते हैं,लेकिन लौटने पर कर्ज ना चुकाने कि स्थिति में आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं.इस साल ऐसे पचास मामले दर्ज किये गये हैं. आंध्र प्रदेश सरकार पहले से ही किसानों की आत्महत्या की समस्या से परेशान है,अब यह एक नयी समस्या उनके सामने आ रही हैं.
खाडी देशों की चमक-दमक देखकर वहाँ जाकर काम करने वालों की संख्या पिछले कुछ सालों में काफी तेज गति से बढी हैं.२००५ में भारत से विदेशों में साढे पाँच लाख श्रमिक गये थे वहीं २००६ में यह संख्या बढकर सात लाख हो गयी. प्रत्येक साल एक लाख श्रमिक वापस लौटते हैं.वापस लौटने के बाद जब इनके सामने कर्ज चुकाने की समस्या आती है तो ऐसी स्थिति में ये महजनों से बचते बचते एक शहर से दूसरे शहर भागते फिरते नज़र आते हैं.
बेरोजगारी के कारण और ज्यादा से ज्यादा कमाने की ललक में कामगार विदेश में काम के लिये भेजने वाले दलालों के झाँसे में आ जाते है और विजटर वीजा पर ही कमाने के लिये चले जाते हैं. दलाल ही इन सबका इंतजाम करते है ,वे इन श्रमिकों को अकूत पैसा कमाने का सब्ज-बाग दिखाते है और अपनी दलाली का पैसा बनाते हैं.लेकिन सब किस्मत के धनी नही होते है,ज्यादतर को छ्ह महीने से एक साल के भीतर ही लौटना पडता है.ऐसे में वे अपने लिये कुछ पैसा बना नही पाते है और लौटन पर तरह तरह की समस्या का सामना करना पडता है.
सरकार भी इसके लिये कम दोषी नही है.पहले तो वह अपने देश में ही रोजगार पैदा नही कर पा रही है और दूसरा अवैधानिक तरीके से होने वाले अप्रवास पर नजर नही रखती है. ऐसे में इन लौटने वाले कामगारों के लिये सहायता का प्रावधान करने का सोचती है.पहले से ही अगर रोजगार के अवसर पैदा कर दे तो इस तरह की समस्या का सामना नही करना पडेगा.

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